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मो.मा. प्रकाश
आज्ञाअनुसारी हुवा देख्यांदेखी साधन कौ है । तात याकै निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग न भया । आगें निश्चय व्यवहार मोक्षमार्गका निरूपण करेंगे, ताका साधन भए ही मोक्षमार्ग होगा। ऐसे यह जीव निश्चयाभासकौं जाने माने है। परन्तु व्यवहार साधनकौं भी भला | जानै है, तातै खच्छंद होय अशुभरूप न प्रवत् है । व्रतादिक शुभोपयोगरूप प्रक्र्ते है, ताते
अतिम अवेयक पर्यंत पदको पावै है । बहुरि जो निश्चयाभासकी प्रबलताते अशुभरूप प्रवृत्ति होय जाय, तो कुगतिविष भी गमन होय परिणामनिकै अनुसार फल पावै है । परंतु संसारका ही भोक्ता रहै है । सांचा मोक्षमर्ग पाए बिना सिद्धपदकौं न पा है । ऐसें निश्चयाभास व्यवहाराभास दोऊनिके अपलंबी मिथ्यादृष्टी तिनिका निरूपण किया।
अब सम्यक्त्वके सन्मुख से मिथ्यादृष्टी तिनका निरूपण कीजिए है
कोई मंदकषायादिकका कारण पाय ज्ञानोवरणादि कर्मनिका क्षयोपशम भया, ताते | तत्त्वविचार करनेकी शक्ति भई । अर मोह मंद भयो । तात तत्त्वादिविचारविषै उद्यम भया । बहुरि बाह्यनिमित्त देव गुरु शास्त्रादिकका भया, तिनकरि सांचा उपदेशका लाभ भया। तहां अपने प्रयोजमभूत मोक्षमार्गका, वा देवगुरुधर्मादिकका वा जीवादि तत्त्वमिका, वा या परका, वा आपको अहितकारी हितकारी भावमिका, इत्यादिकका उपदेशते सावधान होय, ऐसा विचार किया-अहो मुझको तो इस बातनिकी खपरि माहीं, में भ्रमतें भूलि पर्याय-1||३६२
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