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________________ भो.मा. | हीविषे तन्मय भया । सो इस पर्यायकी तो थोरे ही कालकी स्थिति है । बहुरि यहां मोको । | सर्व निमित्त मिले हैं। ताते मोकौं इस बातनिका ठीक करना । जाते इनविषे तो मेरा ही प्रकाश प्रयोजन भासे है। ऐसे विचार जो उपदेश सुन्या ताका निर्धार करनेका उद्यम किया । तहां । उदेश, लवण, निर्देश, परीक्षा द्वारकरि तिनका निर्धार होय । ताते पहले तो तिनके नाम सीखे, बहुरि तिनके लक्षण जाने, बहुरि ऐसे संभव है कि नाहीं, ऐसा विचारलिये परीक्षा # करने लगे । तहां नाम सीख लेना अर लक्षण आनि लेना ये दोऊ तो उपदेशकै अनुसार। हो है । जैसे उपदेश दिया तैसें याद करि लेना । बहुरि परीक्षाकरनेविषै अपना विवेक चाहिये है । सो विवेककरि एकांत अपना उपयोगवि विचारै-जैसे उपदेश दिया तैसे ही है कि अन्यथा है । तहां अनुमानादि प्रमाणिकरि ठीक करे, वा उपदेश तो ऐसे है अर, | ऐसें न मानिए तो ऐसे होय । सो इनविष प्रबल युक्ति कौन है अर निर्बल युक्ति कौन है । | जो प्रवल भासे, ताको सांचा जाने । बहुरि जो उपदेशते अन्यथा सांच भासै वा संदेह | रहै निार न होय, तो बहुरि विशेष ज्ञानी होम तिनकों पूछ । बहुरि वह उत्तर दे, वाकौं । विचारै । ऐसे ही यावत् निर्धार न होय, तावत् प्रश्न उत्तर करे। अथवा समान बुद्धि के धारक होय, तिनकों आपकै जैसा विचार भया होय तैसा कहै । प्रश्न उत्तर परस्पर चर्चा करै । बहुरि जो प्रश्नोत्तरविषै निरूपण भया होय, ताकौं एकांतविणे विचारै । याही प्रकार ३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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