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मो.मा. प्रकाश
करनी योग्य है, ऐसा भाव कैसे किया । अर जो कर्ता है, तो वह अपना कर्म भया, तब कर्ताकर्मसंबंध स्वयमेव ही भया । सो ऐसी मामि तौ भ्रम है । तो कैसे है बाह्य व्रतादिक हैं, सो तो शरीरादि परद्रव्यकै आश्रय हैं। परद्रव्यका आप कर्ता है नाहीं । ताते तिसविर्षे । || कर्तृत्वबुद्धि भी न करनी । अर तहां ममत्व भी म करना । बहुरि प्रतादिकविणे ग्रहण त्याग
रूप अपना शुभोपयोग होय, सो अपने आश्रय है । ताका आप कर्ता है, ताते तिसविषै Mi कर्तृत्वबुद्धि भी माननी । अर तहां ममत्व भी करना । बहुरि इस शुभोपयोगको बंधका ही
कारण जानना, मोक्षका कारण म जानना । जातें बंध अर मोचक तौ प्रतिपक्षीपना है। तातें एक ही भाव पुण्यबंधकों भी कारण होय, अर मोक्षकों भी कारण होय, ऐसा मानना भ्रम है । तातें व्रत अव्रत दोऊ विकल्परहित जहाँ परद्रब्यके ग्रहण त्यागका किछु प्रयोजन नाहीं, ऐसा उदासीन वीतराग शुद्धोपयोग सोई मोक्षमार्ग है । बहुरि नीचली दशाविषै केई जीवनिकै शुभोपयोग अर शुद्धोपयोगका युक्तर्पना पाईए है । तातें उपचारकरि व्रतादिक शुभोपयोगकों मोक्षमार्ग कह्या है । वस्तुविचारतें शुभोपयोग मोक्षका घातक |
ही है । जाते मोक्षों कारण सोई मोक्षका घातक है, ऐसा श्रद्धान करना ।।। । बहुरि शुद्धोपयोगहीको उपादेय मानि ताका उपाय करना । शुभोपयोग अशुभोपयोगों हेय
नानि तिनके त्यामका उपाय करना । जहां शुभोपयोग न होय सके, तहाँ अशुभोपयोगकों
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