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________________ मो.मा. प्रकाश కంచి విందాం రాం నిరంతరాయం నింపులు मार्ग है। वीतराग भावनिक अर प्रस्तादिकनिकै कदाचित् कार्यकारणपनो है । तातें व्रतादि-11 ककों मोनमार्ग कहे, सो कहने मान ही हैं । परमार्थ बाह्यक्रिया मोक्षमार्ग नाहीं, ऐसा ही श्रद्धान करना । ऐसे ही अन्यत्र भी ब्यबहारनयका अंगीकार करना जानि लेमा । यहां ।। प्रश्न--जो व्यवहारनय परकों उपदेशविणे ही कार्यकारी है कि, अपना भी प्रयोजन साधे है । ताका समाधान__आप भी यावत् निश्चयनयकरि प्ररूपित वस्तुको म पहिचामै, तावत् व्यवहारमार्गकवर वस्तुका निश्चय करै । ताते नीचली दशाविषै आपको भी व्यवहारनय कार्यकारी है । परंतु व्यवहारको उपचार मात्र मानि वाकै द्वारि वस्तुका ठीक करै, तो कार्यकारी होय । बहुरि जो | निश्चयवत् व्यवहार भी सत्यभूत मानि वस्तु ऐसे ही है, ऐसा श्रद्धान करे, तो उलटा अकार्यकारी होय जाय । सो ही पुरुषर्थसिदध्युपायविषे कह्या है अबुधस्य बोधनार्थं मुनीश्वरा देशग्रन्स्यभूतार्थम् । व्यवहारमेव केवलमवैति यस्तस्य देशना नास्ति ॥ ६॥ माणषक एव सिंहो यथा अवस्थनवगीतसिंहस्य। .. व्यवहार एव हि तथा निश्चयतां यात्वनिश्चयज्ञस्यः ॥ ७॥ इनका अर्थ-मुनिराज अज्ञार्मा के सामभमानमोक्कों असल्यार्थ जो व्यवहारमा लाकौं अपदेशो । -నంగా నిరంతరం - మంత్రం అనుమానాలను *
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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