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________________ मो.मा. प्रकाश याका अर्थ -- जो व्यवहारविषै सुता है, सो जोगी अपने कार्यविषै जागे है । बहुरि जो व्यवहारविषै जागे है, सो अपने कार्यविषै सूता है । तातैं व्यवहारनयको श्रद्धान छोड़ि निशचयनयका श्रद्धान करना योग्य है । व्यवहारनय स्वद्रव्य परद्रव्यकौं वा तिनके भावनिकों वा कारण कार्यादिककों काहूकों काहूविषै मिलाय निरूपण करे है । सो ऐसे ही श्रद्धानतें मिथ्यात्व है । तातै याका त्याग करना । बहुरि निश्चयनय तिनहीकों यथावत् निरूपै है, काहूकों | काहूविषे न मिलावे है । ऐसे ही श्रद्धानतैं सम्यक्त हो है । तातें याका श्रदान करना। यहां प्रश्न -जो ऐसें है, तौ जिनमार्गविषै दोऊ नयनिका ग्रहण करना कया है, सो कैसें ताका समाधान जिनमार्गविषै कहीं तो निश्चयनयकी मुख्यता लिए व्याख्यान है ताकौं तौ 'सत्यार्थ ऐसें ही है' ऐसा जानना । बहुरि कहीं व्यवहारनयकी मुख्यता लिए व्याख्यान है, ताक 'ऐसें है नाहीं - निमित्तादि अपेक्षा उपचार किया है' ऐसा जानना । इस प्रकार जाननेका नाम ही दोऊ नयनिका ग्रहण है । बहुरि दोऊ नयनिके व्याख्यानकों समान सत्यार्थ जानि ऐसें भी है, ऐसे भी है, ऐसा भ्रमरूप प्रवर्त्तनेकरि तौ दोऊ नयनिका ग्रहण करना कला है नाहीं । ब| हुरिप्रश्न - जो व्यवहारनय असत्यार्थ है, तौ याका उपदेश जिनमार्गविषै काहेकौं दिया- एक निश्चयनयहीका विरूपण करना था । ताका समाधान -: २८२
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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