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________________ मो.मा. प्रकाश eMPARANTRA roatianagar90/9appreposf00000-00-orapfootomfa040000200-80000-00fotox001380010AExof+0000 समाधान ... शुद्ध आत्माका अनुभव सांचा मोक्षमार्ग है । ताते वाकों निश्चय करा । यहां खभाव। अभिन्न परभाव भिन्न ऐसा शुद्धशब्दका अर्थ जानमा। संसारीकों सिद्ध मानना, ऐसा | भ्रमरूप अर्थ शुद्धशब्दका न जनना । बहुरि व्रत तप आदि मोक्षमार्ग है नाहीं, निमित्ता-1 दिककी अपेक्षा उपचारतें इनकों मोक्षमार्ग कहिए है, तातै इनकों ब्यवहार कह्या । ऐसे भूतार्थ अभूतार्थ मोक्षमार्गपनाकार इनकों निश्चय ब्यवहार कहे हैं । सो ऐसे ही मानना ।। बहुरि ए दोऊ ही सांचे मोक्षमार्ग हैं । इन दोऊनिकों उपादेय मानना, सो तो मिथ्या|| बुद्धि ही है । तहां वह कहै है-श्रद्धान तो निश्चयका राखै हैं, अर प्रवृत्ति ब्यवहाररूप राखे हैं, ऐसे हम दोऊनिकों अंगीकार करै हैं । सो भी वन नाहीं । जातें निश्चयका निश्चयरूप व्यवहारका व्यवहाररूप श्रद्धान करना युक्त है । एक ही नयका श्रद्धान भए । एकांतमिथ्यात्य हो है । बहुरि प्रवृत्तिविर्षे नयका प्रयोजन ही नाहीं । प्रवृत्ति तो द्रब्यकी। परणति है । तहां जिस द्रब्यकी परणति होय, ताकौं तिसहीकी प्ररूपिए सो निश्चयनय । अर तिसहीको अन्य द्रब्यको प्ररूपिए, सो ब्यवहारनय; ऐसे अभिप्राय अनुसार प्ररूपणते तिस प्रवृत्तिविषै दोऊ नय बनें हैं । किछू प्रवृत्ति ही तो नयरूप है नाहीं । तात या प्रकार भी दोऊ नयका ग्रहण मानना मिथ्या है । तो कहा करिए, सो कहिए है—निश्चयनयकरि । ३८ ।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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