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________________ मो.मा. प्रकाश ADS-- 2000 లంచం తం సంపందించిన 1000-00 याका अर्थ-व्यवहार अभूतार्थ है। सत्य स्वरूपकों न निरूपै है। किसी अपेक्षा उपचारकरि अन्यथा निरूपै है । बहुरि शुद्ध नय जो निश्चय है, सो भूतार्थ है। जैसा वस्तुका 1 खरूप है, तैसा निरूप है। ऐसे इनि दोनिका खरूप तो विरुद्धता लिए है। बहुरि तू ऐसें | | माने है, जो सिद्धसमान शुद्ध आत्माका अनुभवन सो निश्चय अर व्रत शील संयमादिरूप | प्रवृत्ति सो व्यवहार, सो ऐसा तेरै मानना ठीक नाहीं । जाते कोईद्रव्यभावका नाम निश्चय कोईका नाम व्यवहार, ऐसे है नाहीं । एक ही द्रव्य के भावकों तिस वरूप ही निरूपण करना, सो निश्चय नय है । उपचास्करि तिस द्रब्यके भावकों अन्य द्रव्यके भावस्वरूप निरूपण करना, सो व्यवहार है । जैसें माटीके घड़े कों माटीका घड़ा निरूपिए सो निश्चय, अर घृलसंयोगका उपचारकरि वाकौं ही घृतका घड़ा कहिए, सो ब्यवहार । ऐसे ही अन्यत्र जानना । ताते तू किसीको निश्चय माने, किसीको ब्यवहार माने, सो भ्रम है । बहुरि तेरे मानने विषै भी निश्चय व्यवहारकै परस्पर विरोध आया। जो तू आपकों सिद्ध मान शुद्ध माने है, तो ब्रतादिक काहेकौं करै है । जो व्रतादिकका साधनकरि सिद्ध भया चाहै है, तो वर्तमानविर्षे शुद्ध| आत्माका अनुभवन मिथ्या भया । ऐसें दोऊ नयनिकै परस्पर विरोध है । तातै दोऊ नयनि-11 का उपादेयपना बने नाहीं । यहां प्रश्न-जो समयसारादिविर्षे शुद्ध आत्माका अनुभवकों || निश्चय कम है । व्रत तप संयमादिकको व्यवहार कहा है, तैसे ही हम माने हैं । ताका ३७६ - Galodgo పురుం వంపులకు వైనంపస్తుంచుంచుంచి ।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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