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________________ KEEKKAREKKEKREEKECH चेतना कहते हैं । अर्थात् यहां शुद्ध आत्माके स्वभावका ही स्वाद लिया जोरहा है, कर्मके स्वादका ७ लेना बंद है, यही शुद्धात्माका स्वरूप भीतर झलकता है। यही शुद्ध धर्म या निश्चय धर्म है जिसको . धारनेसे ही जीव उत्तम सुख व मोक्षको पाता है, यह धर्म पर धर्म नहीं है, आत्माका सत्तारूप भाव है। आत्माका अमिट स्वभाव है । इस तरह जो सर्व प्रपंचजालसे उदास रहते हुए आत्मीक शुद्ध परिणतिमें रमण करते हैं वे ही श्रीगुरु हैं। श्लोक-ज्ञानेन ज्ञानमालम्ब्यं, कुज्ञानं त्रिविधि मुक्कयं । ___ मिथ्या माया न दिष्टते, सम्यक्तं शुद्ध दिष्टते ॥ ६८॥ अन्वयार्थ— ( ज्ञानेन ) आत्मज्ञानके द्वारा (ज्ञानं ) ज्ञानको (मालम्ब्य ) आलम्पन करते हुए (कुज्ञानं त्रिविषि) तीन कुज्ञान संशय, विमोह, विभ्रम या कुमति, कुश्रुत, कुभवधि (विमुक्तयं ) छूट जाते हैं। Vतब (मिथ्या माया) मिथ्यात्वभाव व मायाचार या संसारका ममत्व (न दिष्टते ) नहीं दिखलाई पड़ता है किन्तु (शुद्ध सम्यक्तं) शुद्ध निश्चय सम्यग्दर्शन (दिष्टते) दिखलाई पड़ता है। विशेषार्थ-श्रीगुरुकी आत्मानुभवकी परिणतिकी महिमा बताई है कि जब आत्माको यथार्थ ज्ञान ज्ञानको ग्रहण कर लेता है अर्थात् सर्वांग शुद्ध आत्माका ही स्वाद आता है तब वहा कोई संशय या विपरीतता या अनध्यवसाय (ज्ञानमें बेपरवाही) ये तीन दोष नहीं रहते हैं न ऐसे आत्मानुभवीके भीतर कुमति, कुश्श्रुति व कुअवधि ये तीन मिथ्या ज्ञान रहते हैं। उस समय मिथ्या दर्शनका नाम तक नहीं है न वहां कोई ममता है न कोई प्रकारका मायाचार है। वहीं शुद्ध या यथार्थ सम्यग्दर्शन दिखलाई पड़ता है। तब ही वह साधु शुद्ध आत्मीक तत्वमें जमा हुआ होता है। वास्तवमें संसारसे पार करनेवाली शुद्ध आत्माकी दृष्टि है। जिसने भेद विज्ञानके द्वारा अपने आत्माको सर्व अन्य आत्माओंसे व परमात्माओंसे तथा अन्य पुद्गलादि पांच अजीव द्रव्योंसे व उन औपाधिक भावोंसे जो मोहनीय कर्मके द्वारा क्षेते हैं भिन्न जानकर अनुभव किया है, उसीने ही शुद्ध आत्मीक भाव पानेका मंत्र पा लिया है। जो श्रीगुरु इस तरह आत्मीक शुद्ध परिणतिके र व उसीके भीतर दूसरोंको भी लगानेवाले हैं वे ही सच्चे गुरु मानने योग हैं। M ॥७ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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