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________________ बारणतरण अन्वयार्थ-वे सच्चे गुरु (ऊर्ष ) ऊपर सुमेरु पर्वतके ऊपरसे सिद्ध लोक व अलोकाकाश तक श्रावकार (अधो) नीचे सुमेरु पर्वतके नीचेसे सात नर्क व लोकांत व अलोकाकाश तक (मध्य च) तथा मध्यलोकमें जितनी सुमेरु पर्वतकी ऊंचाई है। इस तरह तीन लोक और अलोकमें (ज्ञानदृष्टिं ) सम्यग्ज्ञान या भेदज्ञानकी दृष्टिका ( समाचरेत् ) व्यवहार करते हैं। व (शुद्ध तत्त्व ) शुद्ध आत्मीक तत्त्वमें (स्थिरी भूत्वा) निश्चल रमण करते हुए (ज्ञानेन) आत्मज्ञानके द्वारा (ज्ञान) ज्ञानकी (लंकृतं ) शोभा बढ़ाते हैं । विशेषार्थ-यहां भी गुरु महाराजका स्वरूप घताया है। वे गुरु व्यवहार और निश्चयनयसे लोक व अलोकको ऊपर नीचे मध्यमें सर्व ओर देखने वाले हैं। व्यवहार नयसे छः द्रव्योंकी शुद्ध तथा अशुद्ध पर्यायोंको देखते हैं और निश्चय नयसे छः द्रव्योंके द्रव्य स्वभावको भिन्न २ यथार्थ रूपसे जानते हैं, उनमें अपने आत्माका यथार्थ स्वरूप पहचानते हैं। और अपने शुद्ध आत्मीक स्वभावमें स्थिर होजाते हैं। आत्माके ज्ञानसे अपने सर्व ज्ञानको सुशोभित करते हैं। अर्थात् सर्व संकल्प विकल्पको त्याग कर व सर्व ज्ञानके भेदोंको गौण कर मात्र शुद्ध आत्मीक परिणति रूप ही परिणमते हैं। स्वानुभव द्वारा आत्याका ही अद्वैत भाव पाते हैं, ऐसे गुरु मानने योग्य हैं। श्लोक-शुद्धधर्मं च सद्भावं, शुद्ध तत्त्व प्रकाशकं । शुद्धात्मा चेतनारूपं, रत्नत्रयालंकृतं ॥ ६७ ॥ अन्वयार्थ (शुद्धधर्म च) तथा शुद्ध आत्मीक धर्म (सद्भाव ) सत्तारूप भाव है। शुद्ध आत्माकी परिणति विशेष है ( शुद्ध तत्त्व प्रकाशकं ) यही शुद्ध आत्माके स्वरूपको झलकानेवाला है। (शुद्धात्मा) ४ शुद्ध आत्मा (चेतनारूपं ) चेतनारूप है ( रत्नत्रयालंकृतं ) और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन रत्नत्रयोंसे विभूषित है। विशेषार्थ-जिस शुद्ध तत्वका अनुभव श्री सद्गुरु करते हैं उसको यहां बताया है। सम्यग्दy र्शन आत्माका स्वभाव है, सम्यग्ज्ञान आत्माका स्वभाव है, सम्यक्चारित्र आत्माका स्वभाव है। जब आत्मा राग, द्वेष, मोह त्यागकर व मन, वचन, कायके व्यापारोंसे हटकर निर्विकल्प वीतराग समाधिमें जम जाता है तब वहां ये तीनों निश्चय रत्नत्रय शोभा बढाते हैं। इस अवस्थाको ज्ञान
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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