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________________ धारणतरण श्रावकाचार ॥१८॥ करनेकी प्रेरणा की है।अब सच्चे गुरुका स्वरूप कहते हैं। (सम्यक् ) सच्चा (गुरु) गुरु (शाश्वतं ) अवि- नाशी (ध्रुवं ) न अन्यरूप होनेवाले सामायिक (सम्यक) सम्यग्दर्शनको (च) और (लोकलोकित) लोकमें प्रकाशित या प्रसिद्ध परम उपयोगी (लोकालोकं) लोक व अलोक स्वरूप (तत्वार्थ) सर्व तत्वार्थको ४ (उपासते ) भलेप्रकार धारण करते हैं। विशेषार्थ-सचा गुरु वही है जो सम्यग्दृष्टी व सम्यग्ज्ञानी हो । स्वाभाविक अविनाशी सम्यग्दर्शन आत्माका एक वचन अगोचर परिणति है या आत्माका एक विशेष गुण है। जिसके प्रगट होनेसे आत्माका अनुभव होजाता है। यह गुण सदा ही आत्मामें रहता है परंतु दर्शनमोह और चारित्रमोहके आवरणसे ढका हुआ होता है। यह कभी मिटता नहीं। ऐसे निश्चय सम्यग्दर्शनका लाभ जिनको हो वे ही सच्चे गुरु हैं तथा जो जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष इन सातों तत्वोंको यथार्थ जानकर श्रद्धान करने वाले हों इनका अडान व्यवहार सम्यग्दर्शन है क्योंकि सात तत्वोंके मननसे ही निश्चय सम्यक्तकी प्रगटता होती है। ये सात तत्व सर्व लोकालोकका स्वरूप बता देते हैं। लोकालोक जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल और आकाश, इन छ: द्रव्योंका समुदाय है इनका सच्चा स्वरूप ज्ञानी गुरु जानते हैं। सर्व सिद्धोंका स्वरूप पहचानते हैं। सर्व संसारी जीवोंके आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा व मोक्ष कैसे होती है इस सर्व भेदको जानते हैं। ये ही सच्चे तत्व हैं जिनको सर्वज्ञ भगवानने प्रतिपादन किया है। ये ही सर्व बुद्धिमान लौकिक जनोंको माननीय हैं। इन तत्वोंके भीतरसे सदगुरु शुद्ध आत्मतत्वको भिन्न पहचानकर उसीका अनुभव करनेवाले हैं। श्री समन्तभद्राचार्यने रत्नकरण्डमें गुरुका स्वरूप बताया है विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः । ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते ॥ भावार्थ-जो सच्चे सम्यक्ती साधु इंद्रिय विषयोंकी तृष्णासे शून्य हैं, आरंभ व धनधान्यादि * परिग्रहके त्यागी है, ज्ञानमें, आत्मध्यानमें वतप करने में लीन हैं, बड़े तपस्वी हैं वेही गुरु मानने योग्य हैं। श्लोक-उर्घ अधो मध्यं च, ज्ञानदिष्टिं समाचरेत् । शुद्ध तत्त्व स्थिरी भृत्त्वा, ज्ञानेन ज्ञानलंकृतं ॥ ६६ ॥ ॥६ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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