SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 839
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश मग्रीका त्याग किया है, वा इष्ट भोजनादिकका त्याग किया करे है । सो जैसें कोऊ दाहज्व| रवाला वायु होनेके भयते शीतलवस्तु सेवनका त्याग करै है, परंतु यावत् शीतल बस्तुका | सेवन रुचे, तावत् वाकै दाहका अभाव न कहिये । तैसें रागसहित जीव नरकादिकके भयते ।। | विषयसेवनका त्याग करै है, परंतु यावत् विषयसेवन रुचे, तावत् रागका अभाव न कहिए। वहुरि जैसे अमृतका आखादी देवकों अन्य भोजन स्वयमेव न रुचै, तैसैं स्वरसका आस्वाद| करि विषयसेवनकी रुचि याकै न हो है । या प्रकार फलादिककी अपेक्षा परीषहसहनादिकौं । | सुखका कारण जानै है । अर विषयसेवनादिकों दुखका कारण जानै है । बहुरि तत्कालविषै। परीषह सहनादिकतै दुख होना माने है । विषयसेवनादिकतै सुख माने है। बहुरि जिनते सुख दुख होना मानिए, तिनविणे इष्ट अनिष्ट वृद्धिराग द्वेषरूप अभिप्रायका अभाव होय।। नाहीं । बहुरि जहां रागद्वेष हैं, तहां चारित्र होय नाहीं । तातें यह द्रव्यलिंगी विषयसेवन | | छोरि तपश्चरणादि करे है, तथापि असंयमी है । सिद्धांतविष असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टीते। भी याकों हीन कह्या है । तातै उनकै चौथा पांचवाँ गुणस्थान है, याकै पहला ही गुणस्थान ।। है, यहां कोऊ कहै-असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टीकै कषायनि की प्रवृत्ति विशेष है, अर द्रव्यलिंगी मुनिकै थोरी है, याते असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टी तौ | सोलहवां स्वर्गपर्यंत ही जाय अर द्रव्यलिंगी ऊपरिमें अवेयकपर्यंत जाय । तातै भावलिंगी ||३७५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy