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________________ | तैसें द्रव्यलिंगी मोक्षका कारण जानि प्रशस्तरागका उपाय राखै है। उपाय बनि आए हर्ष | काय माने है । ऐसें प्रशस्तरागका उपायवि वा हर्षविष समानता होते भी सम्यग्दृष्टी कै तौ दंड समान मिथ्यादृष्टीकै व्यापारसमान श्रद्धान पाइए है । तातें अभिप्रायविषै विशेष भया । बहुरियाकै परीषह तपश्चरणादिकके निमित्सतै दुख होय, ताका इलाज तौ न करै है, परंतु दुख ! | । वैदै है । सोदुखका बेदना कषायहा है । जहांवीतरागताहो है,तहांतो जैसें अन्य ज्ञेयकों जाने है | | तैसेही दुखकाकारण ज्ञेयकौंजान है । सोऐसी दशायाकी न हो है । बहुरि उनकौंसहै है, सोभी | कषायका अभिप्रायरूप विचारतें सहै है । सोविचार ऐसाहो है—जो परवेशपर्ने नरकादिगति- | | विषे बहुत दुख सहे, ये परीषहादिकका दुख तो थोरा है । याकों स्ववश सहें स्वर्ग मोक्षसुख की प्राति हो है । जो इनकों न सहिए अर विषयसुख सेईए,तो तो नरकादिककी प्राप्ति हो है,। तहां बहुतदुख होगा । इत्यादि विचारविर्षे परीषहनि विषै अनिष्टबुद्धि रहैहै। केवल नरकादिकके | भयतै वा सुखके लोभते तिनकों सहै है । सो ए सर्व कषायभाव ही हैं । बहुरि ऐसा विचार || हो है-जे कर्म वांधे, ते भोगेविना छूटते नाहीं । तातै मौकों सहने आए । सो ऐसे विचारतें कर्मफल चेतनारूप प्रवर्ते है । बहुरि पर्यायदृष्टिते जो परीषहादिकरूप अवस्था हो है, ताकौं । आपके भई माने है । द्रव्यदृष्टितै अपनी वा शरीरादिककी अवस्थाकौं भिन्न न पहिचाने है ।। ऐसे ही नानाप्रकार व्यवहार विचारते परीषहादिक सहै है । बहुरि याने राज्यादि विषयसा- ३७४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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