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मो.मा. प्रकाश
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जैसें में जीव मारों हौं, में परिग्रहधारी हौं, इत्यादिरूप मानि थी, तैरोंही में जीवनिकी रक्षा करौं हों, में नग्न परिग्रहरहित हों, ऐसी मानि भई । सो पर्यायाश्रित कार्यविषे अहंबुद्धि है, सो ही मिथ्यादृष्टि है । सोई समयसारविषै कह्या है--
ये तु कर्तारमात्मानं पश्यन्ति तमसावृताः ।
सामान्यजनवत्तेषां न मोक्षोपि मुमुक्षुतां ॥१॥ याका अर्थ-जे जीव मिथ्याअंधकारव्याप्त होत संतै आपकों पर्यायाश्रित क्रियाका कर्ता। |मान हैं, ते जीव मोक्षाभिलाषी हैं, तोऊ तिनकै जैसे अन्यमती सामान्य मनुष्यनिकै मोक्ष न
होय तैसे मोक्ष न हो है । जाते कर्त्तापनाका श्रद्धानकी समानता है । बहुरि ऐसे आप कर्ता | होय श्रावकधर्म वा मुनिधर्मकी क्रियाविणै मन वचन कायको प्रवृत्ति निरंतर राखे है। जैसे उन | क्रियानिविषै भंग न होय, तैसें प्रवतॆ है। सो ऐसे भावतौ सरागहैं । चारित्र है, सो वीतरागभाव रूप है। तातै ऐसे साधनों मोक्षमार्ग मानना मिथ्याधुद्धि है । यहां प्रश्न-जो सराग
वीतराग भेदकरि दोयप्रकार चारित्र कह्या है, सो कैसें है । ताका उत्तर--- । जैसें तंदुल दोय प्रकार हैं-एक तुषरहित हैं,एक तुषसहित हैं । तहां ऐसा जानना-तुष ।
है सो तंदुलका स्वरूप नाहीं । तंदुलविषै दोष है । पर कोई स्याना तुषसहित वंदुलका संग्रह करै था, ताकौं देखि कोई भोला तुषनिहीको तंदुल मानि संग्रह करे, तो वृथा खेदखिन्न ही ३७१