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कारा
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सम्यग्दृष्टी भी तो बुरा जानि परद्रव्यको त्यागें है। ताका समाधान____ सम्यग्दृष्टी परद्रव्यनिकों बुरा न जाने है । अपना रागभावकों बुरा जाने है । आप सग-11 गभावकों छोरै, तात ताका कारणका भी त्याग हो है । वस्तु विचारें कोई परद्रव्य तो भला।। | बुरा है नाहीं । कोऊ कहेगा, निमित्तमात्र तो है । ताका उत्तर
परद्रव्य जोरावरी तो क्योंई विगारता नाहीं। अपने भाव बिगरै तब वह भी बाह्यनिमित्त । है । बहुरि वाका मिमित्तविना भी भाव बिगरै हैं । तातै नियमरूप निमित्त भी नाहीं। ऐसे परद्रव्यका तो दोष देखना मिथ्याभाव है । रागादिभाव ही बुरे हैं। सो याकै ऐसी समझि नाहीं । यह परद्रव्यनिका दोष देखि तिनविषै द्वेषरूप उदासीनता करै है। सांची उदासीनता | | तौ वाका नाम है, जो कोई ही परद्रव्यका गुण वा दोष न भास, तात काहूकौं बुरा भला न
जाने । आपकों आप जाने , परकौं पर जानें, परतै किछू भी प्रयोजन मेरा नाहीं, ऐसा मानि | साक्षीभूत रहै । सो ऐसी उदासीनता ज्ञानीही कै होय । बहुरि यह उदासीन होय शास्त्रविषै व्यवहारचारित्र अणुव्रत महाव्रतरूप कह्या है, ताको अंगीकार करै है, एकदेश वा सर्वदेश | | हिंसादिपापकों छाई है, तिनकी जायगा अहिंसादि पुण्यरूप कार्यनिविषै प्रवत्र्ते है। बहुरि जैसे पर्यायाश्रित पापकार्यनिविषै कर्त्तापना माने था तैसें ही अब पर्यायाश्रित पुण्यकार्यनिविषै। कर्त्तापना अपना मानने लगा, ऐसें पर्यायाश्रित कार्यनिविणे अहंबुद्धि माननेकी समानता भई। ३७०
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