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मो.मा. प्रकाश
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बहुरि आचरणकै अनुसार ही परिणाम हैं। कोई माया लोभादिकका अभिप्राय नाहीं है । इ| नकों धर्म जानि मोक्षकै अर्थि इनका साधन करें हैं। कोई स्वर्गादिक भोगनिकी इच्छा न राखें, | परंतु तत्त्वज्ञान पहलै न भया तातें आप तो जानै मोक्षका साधन करों हौं, अर मोक्षका सा-1
धन जो है, ताकौं जाने भी नाहीं । केवल खर्गादिकहीका साधन करें । सो मिश्रीकौं अमृत | जानि भखै हैं, अमृतका गुण तो न होय । आपकी प्रतीतिकै अनुसार नफा फल होता नाहीं।। | फल जैसा साधन कर, तैसा ही लागें है। शास्त्रविषै ऐसा कह्या है-चारित्रविषै 'सम्यक' पद है, सो अज्ञानपूर्वक प्राचरणकी निवृत्तिकै अर्थि है । तातै पहले तत्वज्ञान होय, तहां पीछे । चारित्र होय, सोसम्यकचारित्र नाम पावै है । जैसे कोई खेतीवाला बीज तो बोवे नाहों अर अ-18 न्य साधन कर, तौ अन्नप्राप्ति कैसे होय । घास फूस ही होय । तैसें अज्ञानी तत्त्वज्ञानका तो
अभ्यास करे नाही, अर अन्य साधन कर, तौ मोक्षप्राप्ति कैसे होय देवपदादिक ही होय । | तहां केई जीव तो ऐसे हैं, तत्वादिकका नीकै नाम भी न जाने, केवल ब्रतादिकवि ही प्रवः । हैं । केई जीव ऐसे हैं, पूर्वोक्तप्रकार सम्यग्दर्शन ज्ञानका अयथार्थ साधनकरि व्रतादिविषै प्रवर्स हैं । सो यद्यपि व्रतादिक यथार्थ आचरें तथापि यथार्थ श्रद्धान ज्ञानबिना सर्व आचरण मिथ्याचारित्र ही है । सोही समयसारका कलशाविषे कहा है
क्लिश्यन्तां खयमेव दुर्धरतरैर्मोक्षोन्मुखैः कर्मभिः ।
అని అంటే రంగు 60000000000000000000ను
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