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मो.मा. प्रकाश
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वनै । यद्यपि स्वस्त्रीका त्याग करना धर्म है, तथापि पहले सतव्यसनका त्याग होय, तब ही खस्त्रीका त्याग करना योग्य है। ऐसे ही अन्य जानने । बहुरि सर्व प्रकार धर्मकों न जाने, ऐसा जीव कोई धर्नका अङ्गको मुख्यकरि अन्य धर्मनिकौं गौण करे है । जैसें केई जीव दया । धर्मको मुख्यकरि पूजा प्रभावनादि कार्यकौं उथापै हैं, केई पूजा प्रभावनादि धर्मकौं मुख्यकरि । हिंसादिकका भय न राखें हैं, केई तपकी मुख्यताकरि आर्तध्यानादिकरिके भी उपवासादि करें। बो आपकों तपस्वी मानि निःशंक क्रोधादि करें, केई दानको मुख्यताकरि बहुत पाप करके। भी धन उपजाय दान दे हैं, केई आरंभत्यागकी मुख्यताकरि याचना करने लगि जांय हैं, केई । जीव हिंसा मुख्य करि स्नानशौचादि नाहीं करै हैं वा लौकिक कार्य आएँ धर्म छोड़ि तहां लागि जाना इत्यादि करे हैं । इत्यादि प्रकारकरि कोई धर्मको मुख्यकरि अन्य धर्मकों न गिर्ने । हे, वा वाकै आसरे पाप आचरै हैं। सो जैसैं अविवेकी व्यापारीकों काहू व्यापारके नफेके अर्थि अन्य प्रकारकरि घना टोटा होय है, तैसें यह कार्य भया । सो जैसे विवेकी व्यापारीका प्रयोजन नफा है, सर्व विचारकरि जैसे नफा घना होय तैसे करै। तैसें ज्ञानीका प्रयोजन वीतरागभाव है । सर्व विचारकरि जैसें वीतरागभाव घना होय, तैसें करै । जाते मूलधर्म वीतराग-1 भाव है । याही प्रकार अविवेकी जीव अन्यथा धर्म अङ्गीकार कर हैं, तिनकै तौ सम्यक्चारित्र का आभास भी न होय । बहुरि केई जीव अणुव्रत महाव्रतादिरूप यथार्थ आचरण करे हैं।
రాంతం రాం రాం రంగంలో