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मो.मा. क्रिया किया करें जैसे धनादिकका तो त्याग किया, अर चोखा भोजन चोखा वस्त्र इत्यादि प्रकाश विषयनिविर्षे विशेष प्रवः । बहुरि कोई जामा पहरना, स्त्रीसेवन करना, इत्यादि कार्यनिका
तो त्यागकरि धर्मात्मापना प्रकट करें, अर पीछे खोटे व्यापारादि कार्य करें। तहां लोकनिंद्य पापक्रियाविषै प्रवत्त । ऐसे ही कोई क्रिया अति ऊँची, कोई क्रिया अति नीची करें। तहां लोकनिंद्य होय, धर्मको हास्य करावें । देखो अमुक धर्मात्मा ऐसे कार्य करे हैं । जैसें कोई पुरुष । एक वस्त्र तो अति उत्तम पहरे, एक वस्त्र अति हीन पहरै, तो हास्य ही होय । तेसैं यह हास्य पावै हैं । सांचा धर्मकी तो यह आम्नाय है, जेता अपना रागादि दूरि भया होय, ताकै अनुसार जिस पदविषे जो धर्मक्रिया संभवै, सो सर्व अङ्गीकार करे । जो थोरा रागादि मिव्या होय, तो नीचा ही पदविणे प्रवत्त । परंतु ऊँचा पद धराय, नीची क्रिया न करै। यहां प्रश्न-जो स्त्रीसेवनादिकका त्याग ऊपरिकी प्रतिमाविषै कह्या है, सो नीचली अवस्थावाला तिनका त्याग करै कि न करै । ताका समाधान
सर्वथा तिनका त्याग नीचली अवस्थावाला कर सकता नाहीं । कोई दोष लागै है, तातें। ऊपरिकी प्रतिमाविषै त्याग कया है। नीचली अवस्थाविषै जिस प्रकार त्याग संभवै, तैसा, नीचली अवस्थावाला भी करै। परंतु जिस नीचली अवस्थाविषै जो कार्य संभवे नाही, ताका करना तो कषायभावनिहीत हो है । जैसे कोऊ सप्तव्यसन सेवे, वस्त्रीका त्याग करे, तो कैसें । ३६५