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________________ Bo प्रकाश मो.मा.1 वा पीछे जाकी प्रतिज्ञा करें, ताविषै अति आसक्त होय लागे हैं । जैसे उपवासके धारने पारने । भोजनविष अतिलोभी होय गरिष्ठादि भोजन करें, शीघ्रता घनी करें । सो जैसे जलकों । मंदि, राख्या था, छुव्या तब ही बहुत प्रवाह चलने लागा। तैसें प्रतिज्ञाकरि विषयप्रवृत्ति मंदि, । अन्तरंग आसक्तता बंधती गई । प्रतिज्ञा पूरी होते ही अत्यन्त विषयप्रवृत्ति होनै लागी । सो प्रतिज्ञाका कालविधै विषयवासना मिटी नाहीं । आगे पीछे तिसकी एवज अधिकारागकिया, तो फल तो रागभाव मिटे होगा । तातै जेती विरक्तता भई होय, तितनी ही प्रतिज्ञा करनी । महामुनि भी थोरी प्रतिज्ञा करें पीछे पाहारादिवि उछटि करें । अर बड़ी प्रतिज्ञा करै हैं, सो अपनी शक्ति देखि कर हैं । जैसें परिणाम चढ़ते रहैं, लो करै हैं । प्रमाद भी न होय | अर बाजता भी न उपजै । ऐसी प्रवृत्ति कारिजकारी जाननी। बहुरि जिनके धर्मऊपरि दृष्टि | नाही, ते कबहू तो बड़ा धर्म आचरै, कवह अधिक स्वच्छन्द होय प्रवत्त । जैसें कोई धर्मपर्वविषे तो । बहुत उपवासादि करै, कोई धर्मपर्वविषै बारंबार भोजनादि करै सो धर्मबुद्धि होय, तौ सर्व धर्मपर्वनिविष यथायोग्य संयमादि धरै । बहुरि कबहू तो कोई धर्मकार्यनिविर्षे बहुत धन खरचै, कबहूँ। कोई धर्मकार्य आनि प्राप्त भया होय, तो भी तहां थोरा भी धन न खरचै । सो धर्मबुद्धि होय, तो यथाशक्ति यथायोग्य सर्व ही धर्मकार्यनिविषै धन खरच्या करें। ऐसे ही अन्य जानना। बहुरि || । जिनके सांचा धर्मसाधन नाही, ते कोई क्रिया तो बहुत बड़ी अङ्गीकार करें अर कोई हीन okcao50000001230030319600000000000Kistooractoor.BE//08/NODeloo-861001064 तर
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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