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मो.ना.
प्रकाश
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आदि कुविसनविर्षे लगे हैं। अथवा सोय रह्या चाहें। यह जानें, किसी प्रकारकरि काल पूरा करना । ऐसे ही अन्य प्रतिज्ञाविषे जानना । अथवा केई पापी ऐसे भी हैं, पहले प्रतिज्ञा | करें पीछे तिसतै दुखी होय,तब प्रतिज्ञा छोड़ दें। प्रतिज्ञा लेना छोड़नातिनकै ख्याल मात्र है।
सो प्रतिज्ञा भंग करने का महापार है। इस तौ प्रतिज्ञा न लेनी ही भली है । या प्रकार पहले तो निर्विचार होय; प्रतिज्ञा करें, पीछे ऐसी इच्छा होय।सो जैनधर्मविष प्रतिज्ञा न लेनेका | दंड तो है नाहीं । जैन धर्मविपै तो यह उपदेश है,पहले तो तत्वज्ञानी होय । पीछे जाका त्याग करे, ताकादोष पहिचाने । त्याग किए गुण होय,ताकौं जाने। बहुरि अपने परिणामनिकाठीक करै । वर्त्तमान परिणामनिहीकै भरोसै प्रतिज्ञा न करि बैठे आगामी निर्वाह होता जाने, तौ प्रतिज्ञा करें। बहुरि । शरीरकी शक्ति वा द्रव्यक्षेत्र काल भावादिकका विचार करै । ऐसें विचारें पीछे प्रतिज्ञा करनी, सो भी ऐसी करनी जिस प्रतिज्ञातै निरादरपना न होय,परिणाम चढ़ते रहें। ऐसी जैनधर्मको आम्नाय । है। यहां कोऊ कहै, चांडालादिकोंने प्रतिज्ञा करी, तिनकै इतना विचार कहां हो है ।। ताका समाधान
मरणपर्यंत कष्ट होय, तो होहु परंतु प्रतिज्ञा न छोड़नी, ऐसा विचारकरि प्रतिज्ञा करें ।। हैं। प्रतिज्ञावि निरादरपना नाहीं । अर सम्यग्दृष्टी प्रतिज्ञा करै है, सो तत्वज्ञानादिपूर्वक ही करे है । बहुरि जिनके अंतरंग विरक्तता न भई अर बाह्य प्रतिज्ञो धरै हैं, ते प्रतिज्ञाके पहलें ।। ३६३
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