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________________ मो.मा. अनुप्रेक्षा है । बहुरि क्षु धादिक भए तिनके नाशका उपाय न करना, बाकों परीषह सहना । प्रकाश । कहै हैं । सो उपाय तो न किया, अर अंतरंग क्षुधादि अनिष्ठ सामग्री मिले दुखी भया, रति आदिका कारण मिले सुखी भया, सो तो दुखसुखरूप परिणाम है, सोई आर्तध्यान रौद्रध्यान है। ऐसे भावनितें संवर कैसे होय । तातै दुखका कारण मिले दुखी न होय, सुखका कारण मिले सुखी न होय, ज्ञेयरूपकरि तिनका जाननहारा ही रहै, सोई सांची परीषहका सहना है। बहुरि हिंसादि सावद्य योगका त्यागकौं चारित्र माने हैं। तहां महावतादिरूप शुभयोगकौं उपादेयपने करि ग्रहण माने है । सो तत्वार्थसूत्रविषै प्रास्त्रवपदार्थका निरूपण करते महाबत अणुबत भी प्रास्त्रवरूप कहे हैं । ए उपादेय कैसे होय, । अर आस्रव तौ बंधका साधक है, चारित्र मोक्षका साधक है । तातै महाव्रतादिरूप प्रास्रवभावनिकै चारित्रपनो संभवै नाहीं।। सकल कषायरहित जो उदासीनभाव ताहीका नाम चारित्र है। जो चारित्रमोहके देशघाती स्पर्द्धकनिके उदयतै महामंद प्रशस्त राग हो है, सो चारित्रका मल है। याकौं छूटता न जानि याका त्याग न करै है । सावद्ययोग ही त्याग करै है। परंतु जैसे कोई पुरुष कंदमूलादि। बहुत दोषीक हरितकायका त्याग करै है, अर कई हरितकायनिकों भखै है । परन्तु ताकौं धर्म न माने है । तैसें मुनि हिंसादि तीनकषायरूप भावनिका त्याग करे है, अर केई मंदकषाय-11 रूप. महावतादिकों पाले है। परंतु ताकों मोक्षमार्ग म माने है। यहां प्रश्न-जो ऐसे है, - ३४८
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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