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________________ मो.मा. निर्जरा भी हो है, सो कैसे है। ताका समाधानप्रकाश . वह भाव मिश्ररूप है । किछु वीतराग भया है, किछू सराग भया है । जे अंश वीतराग ॥ भए तिनकरि संवर है ही भर जे अंश सराग रहे, तिनकरि बंध है। सो एकभावतें तो दो || । कार्य वनै परन्तु एक प्रशस्तरागहीते पुण्यासव भी मानना अर संवरनिर्जरा भी मानना सो भ्रम है । मिश्रभावविष भी यह सरागतो है, यह विरागता है, ऐसी पहचानि सम्यग्दृष्टीहीके होय । ताते अवशेष सराग ताों हेय श्रदहै है । मिथ्यादृष्टीकै ऐसी पहचानि नाहीं। ताते सराग भावविष संवरका भ्रमफरि प्रशस्त रागरूप कार्यनिकों उपादेय श्रद है । बहुरि सिद्धांतविषे गुप्ति समिति धर्म अनुप्रेक्षा परीषह-जय चारित्र इनकरि संवर हो है, ऐसा कह्या है । सो | | इनको भी यथार्थ न श्रद है है । केसें, सो कहिए है बाह्य मन वचन कायकी चेष्टा मेटे, पापचिंतवन न करे, मौन धरै, गमनादि न करे, सो | गुप्ति माने है । सो यहां तो मनविषे भक्तिआदिरूप प्रशस्तरागादि नानाविकल्प हो हैं, वचन || कायकी चेष्टा आप रोकि राखे है, तहां शुभप्रवृत्ति है, अर प्रवृत्तिविर्षे गुप्तिपनो बने नाहीं । ताते ।। वीतरागभाव भए, जहां मन वचनकायकी चेष्टा न होय, सो ही सांची गुप्ति है । बहुरि परजीवनिकी रक्षाकै अर्थ यत्नाचारप्रवृत्ति ताकौं समिति मान है। सो हिंसाके परिणामनितें तो पाप हो है, भर रक्षाके परिणामनितें संवर कहोगे, तो पुण्यबन्धका कारण कौन ठहरेगा।।।।३४६ 10000000000000000000000000000000000000foops/0080010CroasaraGEO-ORIGH-03
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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