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मो.मा.
प्रकाश
शास्त्रनिके कथनकी प्रमाणता न ठहरै, तिनके सर्व ह कथनकी अप्रमाणता माननी । इहां | कोऊ कहै-परीक्षा किए कोई कथन कोई शास्त्रविर्षे प्रमाण भासे, कोई कथन कोई शास्त्रविषै । | अप्रमाण भासे तो कहा करिये । ताका समाधान___ जो आप्तके भासे शास्त्र हैं, तिनिविषे कोई ही कथन प्रमाणविरुद्ध न होइ । जाते के तौ। जानपना ही न होइ, के राग द्वेष होय, ते असत्य कहें । सो आप्त ऐसा होय नाहीं, तातै परीक्षा नीकी नाहीं कीनी है, बातें भ्रम है। बहुरि वह कहै है-छद्मस्थकै अन्यथा परीक्षा होय जाय, तो कहा करै । ताका समाधान___सांची झूठी दोऊ वस्तुनिकों मीड़े अर प्रमाद छोडि परीक्षा किए तो सांची ही परीक्षा होइ । जहां पक्षपातकरि नीके परीक्षा न करे, तहां ही अन्यथा परीक्षा होय है। बहुरि वह कहै है, जो शास्त्रनिविषे परस्पर विरुद्ध कथन तो घनो,-कौन २ को परीक्षा करिए। ताका समाधान
मोक्षमार्गविषै देव गुरु धर्म वा जीवादि तत्व बो बंधमोक्षमार्ग प्रयोजनभूत हैं, सो इनकी परीक्षा करि लेनी । जिन शास्त्रनिविणे ए सांचे कहे, तिनकी सर्व आज्ञा माननी । जिविनषै। ए अन्यथा प्ररूपे, लिनकी आज्ञा न माननी। जैसे लोकविणे जो पुरुष प्रयोजनभूत कार्यनिवि कुठ न बोले, लो प्रयोजनरहितविप केसे झूठ बोबैगा । तैसें जिन शास्त्रनिविर्षे प्रयो
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