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मो.मा. प्रकाश
छोडि कुपथ्य करेगा, तो मरेगा, वैद्यका कछू दोष है नाहीं । तैसें ही कोउ संसारी पुण्यरूप धर्मका निषेध सुनि धर्मसाधन छोड़ि विषय कषायरूप प्रक्र्सेगा, तो वह ही नरकादिविषै दुःख | पावेगा । उपदेश दाताका तो दोष नाहीं । उपदेश देनेवालेका अभिप्राय श्रय श्रद्धानादि छुड़ाय मोचमार्गचिषै लगावनेका जानना । सो ऐसा अभिप्रायते इहां निरूपण कीजिए है । इहां कोई जीव तो सक्रमकरि ही जैनी हैं, जैनधर्मका स्वरूप जानते नाहीं । परन्तु कुलविषै जैसी प्रवृत्ति चली झाई, तैलें प्रध हैं। सो जैसे अन्यमती अपने कुलधर्मविषै प्रवृत्ते हैं, तैसें ही यहु प्रवृत्तै हैं । जो कुलकमही धर्म होय, तौ मुसलमान आदि सर्व ही धर्मात्मा होंइ । जैनधर्मका विशेष कक्षा रह्या । सोई का है
लोयम्मि रायणीई गायं या कुलकम्म कश्यावि । किं पुरा तिलोयपहुणो जिदा मादिगारम्मि ॥१॥
लोकविषै यह राजनीति है - कदाचित् कुलक्रमकरि न्याय नाहीं होय है । जाका कुल चोर होय, ताकोरकरि पकरै, तौ वाका कुतक्रम जानि छोड़े नाहीं, दंड ही दे । तौ त्रिलोकप्रभु जिनेन्द्र देवके धर्मका अधिकारविषै कहा कुलक्रम अनुसारि न्याय संभवे । बहुरि जो पिता दरिद्री होय आप धनवान् होय, तहां तौ कुलक्रम विचारि आप दरिद्री रहता ही नाहीं । धर्मविषै कुता कहा प्रयोजन है । बहुरि पिता नरकि नाथ, पुत्र मोच जाय । तहां
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