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मो-ला. प्रकाश
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परद्रव्यका जानना वा स्वदव्यका विशेष जाननेका नाम विकल्प नाहीं है । तो कैसे है, सो कहिए है-राग द्वेषके वशते किसी ज्ञेयके जाननेविषे उपयोग लगावना । ऐसें बारंबार उपयोगकौं भ्रमावना, ताका नाम विकल्प है। बहुरि जहां वीतराग होय जाकौं जानें है, ताको यथार्थ नाने है । अन्य अन्य ज्ञेयके जाननेके अर्थि उपयोगकों नाहीं भ्रमावे है। तहां निर्विकल्पदशा जाननी । यहां कोऊ कहै-छमस्थका उपयोग तौ नाना शेयविषे भ्रमे ही भ्रमै। तहां निर्विकल्पता कैसे संभव है । ताका उत्तर. जेतै काल एक जाननेरूप रहै, तेतै निर्विकल्प नाम पावै । सिद्धांतविष ध्यानका लक्षण ऐसा ही किया है “एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् ।' एकका मुख्य चिंतवन होय अर अन्य चिंता सके, ताका नाम ध्यान है। सर्वार्थसिद्धि सूत्रांकी टीकाविषै यह विशेष कह्या है जो सर्व चिंता रुकनेका नाम ध्यान होय, तो अचेतनपनो होय जाय । बहुरि ऐसी भी विविक्षा है-जो संतानअपेक्षा नाना शेयका भी जानना होय । परंतु यावत् वीतरागता रहै, गगादिक- | करि आप उपयोगकौं भ्रमावै नाहीं, तावत् निर्विकल्पदशा कहिए है । बहुरि वह कहै-ऐसे है, तौ परद्रव्यतै छुड़ाय स्वरूपविषे उपयोग लगावनेका उपदेश काहेकों दिया है। ताका || समाधान
जो शुभ अशुभ भावनिकों कारण परद्रव्य हैं, तिनविष उपयोग लगे जिनकै राग द्वेष |३२१
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