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.मा. काश
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निर्विचार होनेका नाम निर्विकल्प नाहीं है। ताते छनस्थकै जानना विचार लिए है। ताका प्रभाव माने ज्ञानका प्रभाव होय, तव जड़पना भया। सो |आत्माकै होता नाहीं। ताते विचार तो रहै । बहुरि नो कहिए, एक सामान्यका ही विचार रहता है, विशेषका नाहीं । तो सामान्यका विचार तो बहुतकाल रहता नाही वा विशेषकी अपेक्षा विना सामान्यका खरूप भासता नाहीं । बहुरि कहिए-आपहीका विचार रहता है, परका नाही, तो परविर्षे परबुद्धि | भए बिना भापविणे निजबुद्धि कैसे आवे । तहां वह कहै है, समयसारविषे ऐसा कह्या है
भावये दविज्ञानमिदमाच्छन्नधारया।
सावद्धचायन्परं धुत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठिते ॥ १॥ - याका अर्थ-यह भेदविज्ञान तावत् निरंतर भावना, यावत् परतें छूटे ज्ञान है सो ज्ञान| विषे स्थिति होय । ताते भेदविज्ञान छूटे परका नानना मिटि जाय है। केवल आपहीकों आप जान्या करें है। . सो यहां तो यह कह्या है-पूर्वे पापा परकों एक जानै था, पीछे जुदा जाननेकों-भेदविज्ञानकों तावत् भावना ही योग्य है, यावत् ज्ञान पररूपकौं भिन्न जानि अपने ज्ञानस्वरूपही विषे निश्चित होय । पीछे भेदविज्ञान करनेका प्रयोजन रह्या नाहीं। स्वयमेव परकों पररूप | भापकों आपरूप जान्या करे है । ऐसा नाहीं, जो परद्रव्यका मानना ही मिटि बाय है । आते
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