________________
मो.माः प्रकाश
षता हो है । बहुरि चौथा गुणस्थानविषे कोई अपने स्वरूपका चितवन करें है, ताके भी आ-11 लव बंध अधिक है, वा गुणश्रेणी निजंग नाही है । पंचम षष्ठम गुणस्थानविर्षे माहार विहारादि क्रिया होते परद्रव्य चितवनते भी प्रास्रव बंध थोरा हो है वा गुणश्रेणी निर्जरा हुवा करें है । वाते खद्रव्य परद्रव्यका चितवनतें निर्जरा बंध नाहीं। रागादिक घटे निर्जरा है, रागादिक भए बंध है । ताकों रागादिकके खरूपका यथार्थ ज्ञान नाहीं, तातै अन्यथा माने है। तहां वह पूछे है कि, ऐसे है तो निर्विकल्पदशाविषे नपप्रमाण निपादिकका वा दर्शन ज्ञानादिकका भी विकल्पकरनेका निषेध किया है, सों कैसें है ताका उत्तर
जे जीव इनही विकल्पनिविषै लगि रहे हैं, अभेदरूप एक आपाकों नाहीं अनुभव हैं, तिनों ऐसा उपदेश दिया है, जो ए सर्व विकल्प वस्तुका निश्चयकरनेकों कारन हैं। वस्तुका निश्चय भए इनका प्रयोजन किछू रहता नाहीं। ताते इन विकल्पनिकों भी छोड़ि अभेदरूप एक श्रात्माका अनुभव करना। इनके विचाररूप विकल्पनिहीविष फैसि रहना योग्य
नाहीं । बहुरि वस्तुका निश्चय भए पी ऐसा नाहीं, जो सामान्यरूप खद्रव्यहीका चितवन । रह्या करें । खद्रव्यका वा परद्रव्यका सामान्यरूप वा विशेषरूप जानना होय, परंतु वीतरागता लिए होय, तिसहीका नाम निर्विकल्पदशा है । तहां वह पूछे है-यहा तो बहुत विकल्प भए, निर्विकल्पदशा से संभवे । ताका उत्तर