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________________ वह कहै है हमारे परिणाम तो शुद्ध हैं वाह्य त्याग न किया, तो न किया । ताका उत्तर जे ए हिंसादिकार्य तेरे परिणामबिना खयमेव होते होंय, तो हम ऐसैं माने। अर तू अपना परिणामकरि कार्य करे, तहां तेरे परिणाम शुद्ध कैसे कहिए। विषयसेवनादि क्रिया | | वा प्रमादगमनादि क्रिया परिणामविना कैसे होय । सो क्रिया तो आप उद्यमी होय तू करै, अर तहां हिंसादिक होय ताकों तू गिनै नाहीं, परिणाम शुद्ध माने । सो ऐसें माने तो तेरे | परिणाम अशुद्ध ही रहेंगे। बहुरि वह कहै है-परिणामनिको रोकै ह ए बाह्य हिंसादिक घटाईए । परंतु प्रतिज्ञाकरनेमें बंध हो है, ताते प्रतिज्ञारूप व्रत नाहीं अंगीकार करना ताका | समाधान जिस कार्यके करनेकी आशा रहै, ताकी प्रतिज्ञा न लीजिए है। अर आशा रहे तिसते। राग रहे है । तिस रागभावतें बिना कार्य किए भी अविरतिका बंध हुवा करें । तातै प्रतिज्ञा अवश्य करनी युक्त है । बहुरि कार्यकरनेकों बंधन भए बिना परिणाम कैसे रुकेंगे। प्रयोजन पड़े तद्रूपपरिणाम होंय ही होंय । वा विना प्रयोजन पड़ें भी ताकी आशा रहै। ताते प्रतिज्ञा करनी ही युक्त है । बहुरि वह कहै है—न जानिए कैसा उदय आवे, पीछे प्रतिज्ञाभंग होय तौ महापाप लागे । तातै प्रारब्ध अनुसार कार्य बनें, सो बनौ, प्रतिज्ञाका विकल्प न करना। ताका समाधान
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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