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________________ मो.मा.|| खाधीनपने ऐसा साधन होय, तौ पराधीन इष्ट अनिष्ट सामग्री मिले भी राग द्वेष न होय ।। प्रकाश सो चाहिए तो ऐंसें, रै अनशनादिकते द्वेष भयो । तातें ताको क्लेश ठहरावे है। जब यह क्लेश भया, तब भोजन करना स्वयमेव ही सुख ठहरयो । तहां राग आया, सो ऐसी परिणति ।। तो संसारीनिके पाईएं ही है । तें मोक्षमार्गी होय, कहा किया। बहुरि जो तू कहेगा, केई। सम्यग्दृष्टी भी तपश्चरण नाहीं करे हैं। ताका उत्तर-- यह कारणविशेषते तप न होय संके है। परन्तु श्रद्धानविषै तौ सपकों भला जाने है। ताके साधनका उद्यम राखे है । तेरै तो श्रद्धान यह तप करना क्लेश है ! बहुरि तपका तेरै । उद्यम नाहीं । ताते तेरै सम्यग्दृष्टि कैसे होय । बहुरि वह कहै है-शास्त्रविषे ऐसा कह्या है, तप आदिक क्लेश कर है, तो करो ज्ञानेविना सिद्धि नाहीं। ताका उत्तर जेजीव तत्त्वज्ञानते तो पराङ्मुख हैं और तपहीत मोक्ष माने हैं, तिनकों ऐसा उपदेश दिया है । तत्वज्ञानविमा केवल तपहीतै मोक्ष न होय । बहुरि तत्वज्ञान भए रागादिक मेटने से के अर्थि तपकरनेका तो 'निषेध है माहीं । जो निषेप होय, तो गणधरादिक तप काहेकौं करें। | तातें अपनी शक्तिअनुसार तप करमा योग्य है। बहरि वह तपादिककों बंधन मान है । सो स्वच्छन्दवृत्ति तो भज्ञानअवस्थाहीविर्ष थी। शाम पाएं तो परिणसिकौं रोके ही है। बधुरि । Hतिस परिणति रोकनेके अर्थि घाय हिंसादिक कारणनिका त्यागी भवस्य भया चाहिए। बहुरि । -ad-as-codais-in-200-202P01016003-2000... oofreaojpegoopcroorproozoroscopeeckooncodekisod x e Boorrea0000xx 1051
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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