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.मा. प्रकाश
तते आगामी रागादिक घटाक्नेकों ही कारण हैं। तति कार्यकारी हैं। बहुरि 'वर' कहै हैस्वर्ग नरकादिकों जानें तहां राग द्वेष हो है। ताका समाधान
ज्ञानीकै तौ ऐसी बुद्धि होय नाही, अज्ञानीकै होय । जहां पाप छोड़ि पुण्यकार्यविषै लागै, तहां किछू रागादि घंटे ही है । बहुरि वह कहै है-शास्त्रवियः ऐसा उपदेना है, प्रयोजनभूतः।। थोरा ही जानना कार्यकारी है। ताते विकला कहिको कीजिए ताका उत्तर--
जे जीव अन्य बहुत जाने, भर प्रयोजन भूतो न जाने, अथवा जिनको बहुत जाननेकी शक्ति नाही, तिनको यह उपदेश दिया है। बहुरि जाकी बहुत जाननेको शक्ति होय, ताको तो यह कया नाहीं जो बहुत जाने बुरा होगा। जैता बहुत जानेगा, तेता ही प्रयोजनभूत जा-1 निना निर्मल होगा। जाते शास्त्राविषे ऐसा कया है
सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेपो बलवान् भवेत् । याका अर्थ यह सामान्य शास्त्र विशेष बलवान् है । विशेषही नीकै निर्णय हो है। ताते विशेष जानना योग्य है । बहुरि वह तपश्चरणको वृथाश ठहरावै है। सो मोक्षमार्ग भाए तो संसारी जोवर्माते उलटो परणति चाहिए । संसारी जीवनोकै इष्ट अनिष्ट सामग्री रागद्वेप हो है, याके रागद्वेष न चाहिए । तहां राग छोड़नेके अर्थि इष्ट सामग्री भोजनादिकका त्यागी हो है । अर द्वेष छोड़नेके अर्थि अनिष्टसामग्री अनशनादिकौं अंगीकार करे है।
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