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________________ मो.मा. प्रकाश का चितवन अनेक प्रकार किया करूँगा, सो सामान्य चिंतवनविषै तो अनेक प्रकार बनें नाहीं। अर विशेष करेगा, तब द्रव्य गुण पर्याय गुणस्थान मार्गणा शुद्ध अशद्ध अवस्था इत्यादि। विचार होयगा । बहुरि केवल आत्मज्ञानही तो मोक्षमार्ग होय नाहीं। सप्ततत्वनिका श्रद्धान। ज्ञान भए, वा रागादिक दूरि किए मोक्षमार्ग होगा । सो सप्ततत्त्वनिका विशेष जाननेकों जीव अजीवके विशेष वा कर्मके आस्रव बंधादिकका विशेष अवश्य जानना योग्य है, जाते सम्य-| ग्दर्शन ज्ञानकी प्राप्ति होय । बहुरि तहां पीछे रागादिक दूरि करनेसों जे रागादिक वधावनेके कारण तिनको छोड़ि जे रागादिक घटावनेके कारण होय, तहां उपयोगकों लगावना सो द्रव्या| दिकका वा गुणस्थानादिकका विचार रागादिक घटावनेकों कारण है । इनविर्षे कोई रागादिक । का निमित्त नाही, ताते सम्यग्दृष्टी भए पीछे भी यहां ही उपयोग लमावना। बहुरि वह कहै। है-रागादि मिटावनेकों कारण होय तिनविर्षे तो उपयोग लगावना, परंतु त्रिलोकवी जीवनि । की गति आदि विचार करना, वा कर्मका बंध उदयसत्तादिकका घणा विशेष जानना, वा त्रिलोकका आकार प्रमाणादिक जानना इत्यादि विचार कौन कार्यकारी है। ताका उत्तर-- - इनकों भी विचारतें रागादिक बधते नाहीं। जाते ए ज्ञेय याकै इष्ट अनिष्टरूप हैं नाही ताते वर्तमान रागादिककों कारण नाहीं । बहुरि इनको विशेष जाने तत्त्वज्ञान निर्मल होय, SPOETROORoloodporoopcVO108100-1204 OROCMO0%000000000000000000000000000fxYOOTECHOOGook60-009 ३०७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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