________________
m aee
दसणसूलो धम्मो उवइट्ठ जिणवरेहिं सिस्साणं ।
तं सोऊण सकरणे दसणहीणो ण वंदिव्यो ॥२॥ जिनवरकरि सम्यग्दर्शन है मूल जाका ऐसा धर्म उपदेश्या है। ताकी सुनकरि हे कर्णसहित हो, यह मानौ-सम्यक्त्वरहित जीव बंदनेयोग्य नाहीं । जे आप कुगुरु ते कुगुरुका श्रद्धानसहित सम्यकी कैसे होय । विना सम्यक्त अन्य धर्म भी न होय। धर्म विना बंदनेयोग्य केसे होय । बरि
जे नाई भाभट्टा णाणे भट्टा चरित्तभट्टाय ।
पर्दो मा भट्टा सेसंपि जणं विणासंति ॥८॥ जे दर्शनविकार हैं, ज्ञानविर्षे भ्रष्ट हैं, चारित्रभ्रष्ट हैं, ते जीव भ्रष्टतै भ्रष्ट हैं। और भी जीव जो उनका उपदेश मानें हैं, तिन जीवनिका नाश करें हैं-बुरा करे हैं। बहुरि
anारकरावासाजभर
samanawrenewaanema
जे दंसणेसु महा पाए पाडंति दसणधराणं ।
ते इंति लुल्लमूया वोही पुण दुल्लहा तेसि ॥१२॥ जे श्राप तो सम्यक्तते भ्रष्ट हैं, अर सम्यक्तधारकनिकों अपने पगां पड़ाया चाहै हैं, ते | लले गंगे हो हैं वा स्थावर हो हैं । बहुरि तिनकै बोधकी प्राप्ति महादुर्लभ हो है।