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________________ - मो.मा. प्रकाश तो नवीन नाम धरावे हैं,अर इच्छा अनुसार ही भेष बनावे हैं । ऐसें अनेक भेष धारनेते गुरुपनो माने हैं, सो यह मिथ्या है। इहां कोऊ पूछे भेष तो बहुत प्रकारके दीसे, तिनविषे । सांचे झूठे भेषको फेस पहचान होय । ताका समाधान, जिन भेषनिविपे विषयकषायका किछु खगाव नाही, ते भेष सांचे हैं। सो सांचे भेष तीन प्रकार है, अन्य सर्व भेष मिथ्या हैं । सो ही षट्पाहुउविषै कुन्दकुन्दाचार्यकरि कहा है-- __एगं जिणस्त स्वं विदियं उक्विट्ठावयाणं सतु। ___ अबरट्ठियाण तिदयं चउद्धं पुण लिंग दंसणे णस्थि ॥१॥ ___ याका अर्थ-एक तो जिनका स्वरूप निर्मय दिगंबर मुनिर्सिम, अर दूसरा उत्कृष्ट भाव कनिका रूप दसई म्यारई प्रतिमाका धारक भावकका लिंग, भर तीसरा आर्यिकानिका रूप MB यह स्त्रीनिका लिंग, ऐसे ए तीन लिंग तो श्रद्धानपूर्वक हैं। बहुरि चोथा लिंम सम्यग्दर्शन-1 स्वरूप नाहीं है । भावार्थ, यह इन तीनलिंग विना अन्यलिंगों माने, सो प्रधानी नाही, मिथ्यादृष्टी हैं। बहुरि इन भेषनिवि केई भेषी अपने भेषकी प्रतीति करावनेके अर्थि किंचित् || धर्मका अंगकौं भी पाले हैं। जैसें खोटा रुपैया चलावनेवाला तिसविर्षे किछु रूपाका भी अंश । राखे है, सैसें धर्मका कोऊ अंग दिखाय अपना उच्चपद मनावे हैं। इहां कोऊ कहे-धर्म || साधन किया, ताका तो फल होगा । ताका उत्तर oolta076/kEGORI#0010Sectioniciprookinjalorferomoooo0000000mrogras-20 २७१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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