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________________ मो.स काजासामान amerecan देखि ठिगाधे, अर धर्म भया माने, सो यह भ्रम है । सोई कह्या है, . जह कुवि स्तारत्तोमुसिज्जमाणो विमएणए हरिसं । .' वह मिच्छवेसमुहिया गयं पिण मुणंति धम्मणिहिं ॥१॥ ___ याका अर्थ-जैसे कोई वेश्यासक पुरुष धनादिककों मुसावता हुवा भी हष माने है, तैसें मिथ्याभेषकरि ठिगे गए जीन ते नष्ट होता धर्म धनकों नाहीं जाने हैं। भावार्थ, यह मिथ्याभेष वाले जीवनिकी शुश्रूषा आदितें अपना धर्म धन नष्ट होय, ताका विषाद नाहीं, मिथ्याबुझधिते हर्ष करे हैं। तहां केई तो मिथ्या शास्त्रनिविष भेष निरूपण किए हैं, तिनको धारें हैं । सो उन शास्त्रनिका करणहारा पापी सुगनक्रियाते उच्चपद प्ररूपणते मेरी मानि हो । हो है, या अन्य जीव इस मार्गविषे बहुत लागें, इस अभिप्रायतें मिथ्याउपदेश दिया। ताकी परंपराकरि विचाररहित जे जीव ते इतना तो विचारें नाहीं, जो सुगमकियाते उच्चपद होना बताये हैं, सो यहां किछू दगा है। भर भ्रमकरि तिनका कह्या मार्गविषे प्रवत्र्ते हैं । बहुरि केई। शास्त्रनिविषै तो मार्म कठिन निरूपण किया, सो तो सधे नाही, अर अपना ऊँचा नाम ध.. राए बिना लोक माने नाहीं, इस अभिप्रायते यति मुनि प्राचार्य उपाध्याय साधु भट्टारक । सन्यासी योगी तपस्वी नग्न इत्यादि नाम तो ऊंचा धरावे हैं, अर इनिका माचरनिकों नाहीं साधि सके हैं, ताते इच्छानुसार नानाभेष बनाये हैं। बहुरि केई अपनी इच्छा अनुसार ही EesariKKEXRAILERTISEMERIENamac २७०
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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