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________________ मो. , ते सर्व कुगुरु जानने । जाते धनपद्धतिविषे तो विषयकषायादि छूटें जैसा धर्मको धारे । प्रकाश । तैसा ही अपना पद मानना योग्य है । तहां कोई तो कुलकरि आपको गुरु माने है । तिनविषे । केई ब्राहाणादिक तो कहे हैं, हमारा कुल ही ऊँचा है, ताते हम सर्व कुल के गुरु हैं । सो उस कुलकी उच्चता तो धर्मसाधनतें है । जो उच्चकुलविणे उपजि हीन आचरण करें, तो वाकों उच्च कैसे मानिए। जो कुलविष उपजनेही उच्चपना रहै, तो मांसभक्षणादि किए भी वाकी उच्च हो मानौ । सो बनै नाहीं । भारतविष भी अनेक प्रकार ब्राह्मण कहे हैं। तहां “जो ब्राह्मण - होय चांडालकार्य करें, ताकौं चांडाल ब्राह्मण कहिए" ऐसा कहा है। सो कुलहीते उच्चपना || होय, तो ऐसी हीनसंज्ञा काहेकौं दई है। बहुरि वैष्णवशास्त्रनिविर्षे ऐसा भी कहै हैं-वेदव्या-1 सादिक मछली आदिकते उपजे । तहां कुलका अनुक्रम कैसे रया । धनुरि मूल उत्पत्ति तो ब्रह्मातें कहे हैं। तातै सर्वका एक कुल है, भिन्नकुल कैसे रह्या । बहुरि उच्चकुलकी स्त्रीके नीचकुलके पुरुषते अर नीचकुलकी स्त्रीकै उच्चकुलके पुरुषते संगम होते संतति होती देखिए है। तहां कुलका प्रमाण कैसे रह्या । जो कदाचित् कहोगे, ऐसें है, तो उच्च नीचकुलका विभाग काहेकों मानो हो । सो लौकिक कार्यविषै तो असत्य भी प्रवर्ति संभवै, धर्मकार्यविर्ष तो प्रसत्यता संभवे नाहीं । लाते धर्मपद्धतिविष कुलअपेक्षा महंत्रपना नाहीं संभवे है । धर्मसापानही महंतपना होय । ब्राह्मणादि कुलनिविणे महंतता है, सो धर्म प्रवृत्तिते है । सो धन - - - - - - - -- CHOLECOMBAKIC-GrekitcourselOOKFCHOOMSCHORice roadsGOOKGlokaakaalookGanfooliceKOIDream reme २६७ mes
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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