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मो.मा.
प्रकाश
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मिथ्यात्वादि कैसे होय । ताका उत्तर,
प्रथम तो परद्रव्यनिकों इष्ट अनिष्ट मानना ही मिथ्या है । जाते कोऊ द्रव्य काडूका मित्र शत्रु है नाहीं । बहुरि जो इष्ट अनिष्ट बुद्धि पाईने है, सो ताका कारण पुण्य पाप है । तातें जैसे पुण्यबन्ध होय, पापबंध न होय, सो करें । बहुरि जो पुण्यउदयका भी निश्चय न होय, केवल इष्ट अनिष्टके बाह्य कारण तिनके संयोग वा वियोगका उपाय करें । सो सौ कुदेव के मानने इष्ट अनिष्ट बुद्धि वृरि होती नाहीं । केवल वृद्धिकों प्राप्त हो है । बहुरि पुण्यबन्ध भी नाहीं होता, पापबंध हो है । बहुरि कुदेव काहूकों धनादिक देते खोसते देखे नाहीं । एं बाह्य कारण भी नाहीं । इनका मानना किस छार्थ कीजिए है । जब अत्यन्त मबुद्धि होय, जीवादिक सत्त्वनिका श्रद्धान ज्ञानका अंश भी न होय, झर रागद्वेषकी यति तीव्रता होय, तव जे कारण नाहीं तिनकों भी इष्ट अनिष्टका कारण माने । तब कुदेवनिका मानना हो है । ऐसें तीव्र मिथ्यात्वादि भए मोक्षमार्ग अति दुर्लभ हो है । श्रागें कुगुरुके भवानादिककौं निषेधिए है,
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tate faresपायादि रूप तो परिणमें मर मानादिकतें आपकों धर्मात्मा मनावें, धम्मात्मा योग्य नमस्कारादि क्रिया करावें, अथवा किंचित् धर्म्मका कोई अंग धारि षड़े धर्मात्मा कुहावें, बड़े धर्मात्मायोग्य क्रिया करावें, ऐसें धर्म्मका आश्रयकरि आपकों बड़ा मना
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