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खाते प्रयोजन सिद्ध होता जाने, ताहीकी सेवा करें । अर मोहित होय कुदेवनितें मेरा प्रयो-|| मो.मा: प्रकाशन
अन कैसे सिद्ध होगा, ऐसा बिना विचारे ही कुदेवनिका सेवन करें । बहुरि कुदेवनिका सेवन । करते हजारों विघ्न होय, साकों तो गिने नाहीं । कोई पुण्यके उदयतें इष्टकार्य होय जाय, 1 साकों कहें, इसके सेवनतें यह कार्य भया। बहुरि कुदेवादिकका सेवन किए बिना जे इष्ट ।।
कार्य होय, तिनकों तो गिनें नाहीं, पर कोई अनिष्ट होय, ताकौ कहें, याका सेवन न किया, । साते अनिष्ट मया । इतना नाही विचारें हैं, जो इनहीकै आधीन इष्ट-अनिष्ट करना होय, तो।
जे पूजै तिनकै इष्ट होय, न पू. तिनकै अनिष्ट होय । सो तो दीसता नाहीं। जैसैं काहूकै शीतलाकों बहुत माने भी पुत्रादि मरते देखिये है । काहूकै बिना माने भी जीवते देखिये है।। सातें शीतलाका मानना किछु कार्यकारी नाहीं। ऐसे ही सर्व कुदेवनिका मानना किछु कार्यकारी नाहीं । इहां कोऊ कहे-कार्यकारी नाही, तो मति होछु, तिनके माननेते किछू बिमार
भी होता नाहीं । ताका उत्तर,॥ जो बिगार म होय, तो हम काहेकों निषेध करें । परन्तु एक तो मिथ्यात्वादि रद होने
ते मोक्षका मार्ग दुर्लभ होय जाय है । सो यह घड़ा बिगार है। बहुरि इमतें पापबंध हो है, । अर पापबंध होनेते आगामी दुःख पाइये है, यह विगार है । यहां पूछे-मिथ्यात्वादिभाव तो।
मतत्वाधानाठि भए होय हैं। पार पापबन्ध खोटे कार्य लिये होय है, सो तिनके माननेते।।२६५
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