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मोमादिक है, तैसें तीर्थकरके क्षेत्रपालादिक हैं। सो समवसरणादिविर्षे इनका अधिकार नाहीं । यह प्रकाशझठी मानि है । घरि जैसे प्रतीहारादिकका मिलाया राजासों मिलिए, तैसें ये तीर्थकरकों
मिलावते नाहीं । वहां तो नाके भक्ति होय, सो ही तीर्थकरका दर्शनादिक करो । किछु किसी के भाधीन नाहीं । बहुरि देखो अज्ञानता, भायुधादिक लिए रौद्रखरूप जिनका तिनकी माय
गाय भक्ति करें । सो जिनमतविर्षे भीरौद्ररूप पूज्य भया, तो यह भी अन्यमतकै ही समान । । भया। तीव्र मिथ्यावभावकरि जिनमतविर्षे ऐसी विपरीत प्रवृत्तिका मानना हो है । ऐसें क्षेत्रपालादिकको भी पूजना योग्य नाहीं।।
बहुरि गऊ सर्पादि तिथंच हैं, ते प्रत्यक्ष ही भापते हीन भासे हैं। इनका तिरस्कारादिक करि सकिए है। इनकी निंद्यदशा प्रत्यक्ष देखिये है। बहुरि वृक्ष अग्नि जलादिक स्थावर हैं, ते तिर्यचनिहते अत्यन्त हीनअवस्थाको प्राप्त देखिये है । बहुरि शस्त्र दवात आदि भचेतन हैं, सो सर्वशक्तिकरि हीन प्रत्यक्ष देखिए है ! पूज्यपनेका उपचार भी संभवै नाहीं। तातें इनका पूजना महा मिथ्याभाव है । इनकों पूजे प्रत्यक्ष वा अनुमानकरि भी किछू फलप्राप्ति नाही भासे है। ताते इनकों पूजना योग्य नाहीं । या प्रकार सर्व ही कुदेवनिका पूजना मानना मिथ्या है । देखे मिथ्यालकी महिमा, लोकविषापते नीयेकौं नमतें आपकौं | निंद्य माने, भर मोहित होय रोडीपर्यंतकों पूजना भी निंद्य न माने। बहुरि लोकविषे तौ
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