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________________ मो.मा. प्रकाश रण हो हैं। किछू सुखदुख देनेकों समर्थ नाहीं । कोऊतो उनका पूजनादिकरें, ताकैभी इष्ट न होय, कोऊ न करै, ताके भी इष्ट होय । तातै तिनिका पूजनादि करना मिथ्याभाव है । यहां कोऊ कहे दे तो पुण्य हैं, सो भला ही है। ताका उत्तर, धर्म देना पुण्य है । यह तो दुःखका भयकरि वा सुखका लोभकरि दे है, सो पाप ही है । इत्यादि अनेकप्रकार करि ज्योतिषी देवनिकों पूजे हैं, सो मिथ्या है । बहुरि देवी दिहाड़ी आदि हैं, ते केई तो व्यंतरी वा ज्योतिषिणी हैं, तिनका त्वरूप मानि पूजनादि करें हैं। केई कल्पित हैं, सो तिनकी कल्पनाकरि पूजनादि करें हैं । | ऐसे व्यंतरादिकके पूजनेका निषेध किया। यहां कोऊ कहै - क्षेत्रपाल दिहाड़ी पद्मावती आदि | देवी पक्ष यक्षिणी आदि जे जिनमतकों अनुसरे हैं, तिनके पूजनादि करनेमें तौ दोष नाहीं । ताका उत्तर- 1 जनमत संयम धारे पूज्यपनौ हो है । सो देवनिकै संयम होता ही नाहीं । बहुरि इन सम्यक् मान पूजिए है, तो भवनत्रिक में सम्यक्त्वकी भी मुख्यता नाहीं । जो सम्यक्वकर ही पूजिए, तौ सर्वार्थसिद्धिके देव लौकांतिकदेव तिनकौं ही क्यों न पूजिए । बहुरि कहोगे -- इनके जिनभक्ति विशेष है । तो भक्तिकी विशेषता भी सौधर्म इंद्रकै है, वा सम्यदृष्टी भी है । वाक छोरि इनकों काहेकों पूजिए । बहुरि जो कहोगे, जैसे राजाकै प्रतीहारा २६३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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