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________________ मो.मा. प्रकाश जीवनिके पूर्वभवका संस्कार तौ रहै ही है । व्यंतरनि पूर्वभवका स्मरणादिकतै विशेष संस्कार है । तातै पूर्वभवविष ऐसी ही वासना थी, जो गयादिकविषै पिंडप्रदानादि किए गति हो है। ताते ऐसे कार्य करनेकौं कहें हैं। मुसलमानादि मरि व्यंतर हो हैं, ते ऐसें कहै | नाहीं। वे अपने संस्काररूप ही वचन कहैं । तातै सर्व व्यंतरनिकी गति तैसें ही होती होय, | तो सब ही समान प्रार्थना करें। सो है नाहीं, ऐसा जानना। ऐसे व्यंतरादिकनिका खरूप जानना। यहुरि सूर्य चंद्रमा ग्रहादिक ज्योतिषी हैं, तिनकों पूजे हैं सो भी भ्रम है। सूर्यादिकको भी परमेश्वरका अंश मानि पूजे हैं। सो वाकै तो एक प्रकाशका ही आधिक्य भासै है । सो प्रकाशमान् अन्य रत्नादिक भी हो हैं । अन्य कोई ऐसा लक्षण नाहीं, जाते वाकों परमेश्वरका अंश मानिए । बहुरि चंद्रमादिककों धनादिककी प्राप्तिके अर्थ पूजे हैं। सो उसके पूजने ही धन होता होय, तो सर्वदरिद्री इस कार्यकों करें। तातै ए मिथ्याभाव है। बहुरि ज्योतिषके विचारते खोटे ग्रहादिक आए, तिनिका पूजनादि करै हैं, ताकै अर्थ |दानादिक दे हैं। सो जैसे हिरणादिक खयमेव गमनादि करें हैं, पुरुषकै दाहिणे वावें आए सुख दुःख होनेका आगानी ज्ञानको कारण हो हैं; किछू सुख दुख देनेकों समर्थ नाहीं । तैसें ग्रहादिक खयमेव गमनादि करे हैं। प्राणीके यथासंभव योगको प्राप्त होते सुख दुख होनेका आगामी ज्ञानकों का Fo00000MaokacoolOMP0000000000RoopcookOC0-058800000000000000000000010840040000*30% - - - - m mmmm
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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