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________________ मो.मा. प्रकाश सकै । पर पापउदय होय, तौ वाका इष्टकार्य न करि सके । ऐसें त्र्यंतरादिकनिकी शक्ति जा| ननी | यहां कोऊ कहै— इतनी जिनकी शक्ति पाईए तिनके मानने पूजनेमें दोष कहा, ताका उत्तर - आपके पापउदय होते सुख न देय सके, पुण्यउदय होते दुःख न देय सकै, वा तिनके पूजने कोई पुण्यबंध होय नाहीं, रागादिककी वृद्धि होते पाप ही होय है । तातै तिनिका मानना पूजना कार्यकारी नाहीं - बुरा करनेवाला है । बहुरि व्यंतरादिक मनावे हैं, पुजावे हैं, सो कुतूहलादिक करें हैं, किछू विशेष प्रयोजन नाहीं राखे हैं। जो उनको माने पूजे, तिससेती कुतूहल किया करें। जो न मानें पूजे तासु किछु न कहें। जो उनके प्रयोजन ही होय, तौ न मानने पूजनेवालेक घना दुःखी करें। सो सौ जिनके न मानने पूजनेका अवगाढ़ है, तिनिकों किछू भी कहते दीसते नाहीं । बहुरिं प्रयोजन सौ खुधादिककी पीड़ा होय तौ होय, सो उनके व्यक्त होय नाह । जो होय, तौ उनके अर्थ नैवेद्यादिक दीजिए है ताकों ग्रहण क्यों न करें, वा औरनिके जिमावने श्रादि करनेहीकों काहेकों कहें। तातै । उनके कुतूहलमात्र क्रिया है । सो आपकों उनके कुतूहलका ठिकाना भए दुःख होय, हीनता होय तातैं उनको मानना पूजना योग्य नाहीं । बहुरि कोऊ पूछे कि व्यंतर ऐसें कहै हैं - गया आदि पिंडप्रदान करो, तौ हमारी गति होय, हम बहुरि न झावें, सो कहा है। ताका उत्तर २६१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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