________________
मो.मा. प्रकाश
परन्तु जस्तावना आदि न हो है। मंत्रवाला जलाया कहै । सो विक्रियक शरीरका जलावना आदि संभवे नाहीं । अप्रगट हो जाय सके है । बहुरि व्यंतरनिकै अवधिज्ञानं काढूकै स्तोकं चेत्रकाल जाननेका है, काहूकै बहुत है। तहां वाकै इच्छा होय अर आपके बहुत ज्ञान होय तो | अप्रत्यक्षको पूछे ताका उत्तर दे, वा आपके स्तोकज्ञान होय तो अन्य महत्ज्ञानीक पूछि आयकरि जुवाब दे । बहुरि आपके स्तोक ज्ञान होय वा इच्छा न होय, सौ पूछे ताका उत्तर न दे, ऐसा जानना । बहुरि स्तोकज्ञानवाला व्यंतरादिककै उपजता केतेक काल ही पूर्व जन्मका ज्ञान होय सकै, पीछे स्मरण मात्र रहे है । तातें तहां कोई इच्छाकर आप किछू चेष्टा करे तो करै । बहुरि पूर्व जन्मकी बातें कहै । कोऊ अन्य वार्ता पूछे, तौ अवधि तौ थोरा, विनाजाने कैसें कहै । बहुरि तोका उत्तर भाप न देय सकै, वा इच्छा न होय, तहां मान कुतूहलादिकतै उत्तर न दे, वा मूंठ बोले । ऐसा जानना । घहुरि देवनिमें ऐसी शक्ति है, जो अपने वा अन्य के शरीरकों या पुद्गलस्कंधकों इच्छा होय तैसें परिणमावे। तातैं नाना प्रकारादिरूप प्राप होय, वा अन्य नानाचरित्र दिखावे । बहुरि अन्य जीवके शरीरकों रोगादियुक्त करें । यहां इतना है—अपने शरीरकों वा अन्य पुद्गलस्कंधनिकों तौ जेती शक्ति होय तितनें ही परिणामाय सके । जातें सर्व कार्य करनेकी शक्ति नाहीं । बहुरि अन्य जीवनिके शरीरादिककों वाका पुण्य पापके अनुसार परिणमाय सकें । वाके पुण्यउदय होय, तो आप रोगादिरूप न परिणमाय
२६०