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________________ मो.मा. प्रकाश दोहा | मिथ्या देवादिक भजे, हो है मिथ्याभाव । तज तिनकों सांचे भजौ, यह हितहेत उपाव ॥ १ ॥ कहीं तौ मोक्षका प्रयोजन है । सो ये प्रयोजन तौ सिद्ध होंय अर्थ — अनादितैं जीवनिकै मिथ्यादर्शनादिक भाव पाइये है, तिनकी पुष्टताको कारण कुदेव कुगुरु कुधर्म्म सेवन है । ताकात्याग भए मोक्षमार्गविषै प्रवृत्ति होय । तातें इनका निरूपण कीजिए है। तहां जे हितका कर्त्ता नाहीं भर तिनकौं भ्रमतै हितका कर्त्ता जानि सेवे, सो कुदेव है । तिनका सेवन तीनप्रकार प्रयोजनलिए करिए है । कहीं परलोकका प्रयोजन है । कहीं इसलोकका प्रयोजन है । नाहीं । किछू विशेषहानि होय । तातें तिनका सेवन मिथ्याभाव है । सो ही दिखाईये हैअन्यमतविषै जिनके सेवनतें मुक्ति होनी कही है, तिनकों केई जीव मोचकै अर्थ सेवन करें हैं, सो मोच होय नाहीं । तिनका वर्णन पूर्वै अन्यमत अधिकारविषै कला ही है । बहुरि अन्यमतविषै कहे देव, तिनकौं केई परलोकविषै सुख होय दुःख न होय, ऐसे प्रयोजन लिए सेव हैं । सो ऐसी सिधि तौ पुण्य उपजाए अर पाप न उपजाए हो है । सो आप तों पाप 00000000000 २५५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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