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________________ रोमा. काश B000-00-O-ORGorprookpoooglroad-00000000000000000OOKE00000ooksOOKOLokactor हधारी होय । सो जेते काल बनें, तेते काल साधन करनेका तौ दोष नाहीं। परंतु पोसहका नाम करिए, सो युक्त नाहीं। संपूर्ण पर्ववियु निरवध रहें ही पोसह होय । जो थोरा भी कालतें पोसह नाम होय, तो सामायिककों भी पोसह कही, नाहीं, शास्त्रविषे प्रमाण बतावो। | जो जघन्य पोसहका इतना काल है, सो बड़ा नाम धराय लोगनिकों भ्रमावना, यह प्रयोजन | भासै है । बहुरि आखड़ी लेनेका पाठ तो और पढ़े, अंगीकार और करै । सो पाठविर्षे तौ। | “मेरै त्याग हैं ऐसा वचन हैं, तातें जो त्याग करै सो ही पाठ पढ़े, यह चाहिए । जो पाठ न आवै, तो भाषाहीतें कहै। परन्तु पद्धतिकै अर्थ यह रीति है। बहुरि प्रतिज्ञा ग्रहण करने करावनेकी मुख्यता है, अर यथाविधि पालनेकी शिथिलता है, भावनिर्मल होनेका विवेक नाहीं। आर्तपरिणामनिकरि वा लोभादिककरि भी उपवासादिक करे, तहां धर्म माने । सो फल तौ परिणामनिते हो है । इत्यादि भनेक कल्पित बातें कहे हैं, सो जैनधर्मविष संभवै नाही। | ऐसें यह जेनविर्षे श्वेतांबरमत है, सो भी देवादिकका वा तत्वनिका वा मोक्षमार्गादिकका | अन्यथा निरूपण करै है। तातें मिथ्यादर्शनादिकका पोषक है, सो त्याज्य है । सांचा जिन-11 धर्मका स्वरूप आगें कहें हैं। ताकरि मोक्षमार्गविषे प्रवर्त्तना योग्य है। तहां प्रवर्ते तुम्हारा | कल्याण होगा। इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक शास्त्रवि अन्यमतनिरूपक ... पांचा अधिकार समाप्त भया ॥५॥ HOCA0rpoxo008-000ropanoracooooooooopcom800-00000000ccomcc/oo000000x0kIdood
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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