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मो.मा. प्रकाशन करे है, पर भाषापाठ पढ़े है। ताका अर्थ जानि तिसविषै उप्रयोग राखे है। भर कोऊ |
प्रतिज्ञा करे, ताकों तो नीकै पाले नाही, अर प्राकृतादिकका पाठ पढ़े, ताके अर्थका आपकौं ।
ज्ञान नहीं, विना अर्थ जाने तहां उपयोग रहे नाहीं, तब उपयोग अन्यत्र भटकै । ऐसें इन। HW दोऊनिविर्षे विशेष धर्मात्मा कौन । जो पहलेकौं कहोगे, तो ऐसा ही उपदेश क्यों न कीजिये।
| दूसरेको कहोगे, तो प्रतिज्ञाभंगका पाप न भया वा परिणामनिके अनुसार धर्मात्मापना ना । ठहरथा । पाठादिकरनेके अनुसार ठहत्या। तातें अपना उपयोग जैसे निर्मल होय, सो कार्य करना । सधै सो प्रतिज्ञा करनी । जाका अर्थ जानिए, सो पाठ पढ़ना। पद्धतिकरि नाम || धरावनेमें नफा नाहीं। बहुरि पडिकमणो नाम पूर्वदोष निराकरण करने का है। सो 'मिच्छामि | दुकडं इतना कहे ही तो दुष्कृत मिथ्या न होय; मिथ्या होने योग्य परिणाम भए दुष्कृत मिथ्या होय । तातें पाठ ही कार्यकारी नाहीं । बहुरि पडिकमणाका पाठविणे ऐसा अर्थ है, जो बारह व्रतादिकवि जो दुष्कृत लाग्यो होय, सो मिथ्या होय । सो प्रतधारे विनाही तिनका पडिकमणा करना कैसे संभवे । जाकै उपवास न होय, सो उपवासविर्षे लाग्या दोषका निराकरणपना करे, तो असंभवपना होय । तातें यह पाठ पढ़ना कौईप्रकार घने नाहीं। बहुरि । पोसहविष भी सामायिकवत् प्रतिज्ञाकरि नाहीं पाले हैं। तात पूर्वोक्त ही दोष है । बहुरि । पोसह नाम तो पर्वका है । सो पर्वके दिन भी केतायक कालपर्यंत पापक्रिया करे, पीछे पोस
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