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मो.मा.
प्रकाश
की मूर्ति देखि, तहां विकाररूप होय अनुराग करे, तो ताकै पापबंध होय । तैसें अरहंतका | आकाररूप धातु काष्ठ पाषाणकी मूर्ति देख, धर्म्म बुद्धित तहां अनुराग करे, तौ शुभकी प्राप्ति कैसें न होय । तहां वह कहै है, विनाप्रतिमा ही हम अरहंतविषैः अनुराग उपजावेंगे । तो उनकौं कहिए है -- आकार देखे जैसा भांव होय, तैसा परोक्ष स्मरण किएहोय नाहीं । याही तैं लोकविषै भी स्त्रीका अनुरागी स्त्रीका चित्र बनावै है । तातें प्रतिमाका अवलंबनकर विशेष भक्ति होनेते विशेष शुभकी प्राप्ति हो है । कोऊ कहै - प्रतिमाकों देखो, परंतु पूजनादिक करनेका कहा प्रयोजन है । ताका उत्तर, -
जैसे कोऊ किसी जीवका आकार बनाय, रुद्रभावनितें घात करें, तो वाकै उस जीवकी हिंसा किएकासा पाप लागे, वा कोऊ काहूका आकार बनाय द्वेषबुद्धितें वाकी बुरी अवस्था करें, तो जाका आकार बनाया, वाकी बुरी अवस्था किएकासा फल निपजै । तैसें अरहंतका | आकार बनाय रागबुद्धि पूजनादि करें, तो अरहंतके पूजनादि किएकासा शुभ फल निपजै । अतिअनुराग भए प्रत्यक्ष दर्शन न होतें आकार बनाय पूजनादि करिए है । इस धर्मानुराग तें महापुण्य उपजै है । बहुरि ऐसी कुतर्क करें हैं, – जो जाकै जिस वस्तुका त्याग होय, ताके आगे तिस वस्तुका धरना हास्य करना है । तातें बन्दनादिकरि अरहंतका पूजन युक्त माहीं । ताका समाधान,
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