SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 701
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा.मा. प्रकाश चल्या गया। तहां ब्रह्मचर्यकी बाडिका भंग भया ।बहुरि आहार ल्याय, के तेक काल राख्या। । आहारादिक राखनेकों पात्रादिक राखे, सो परिवह भया । ऐसें पांच महाव्रतनिका भंग होनेते। मुनेधर्म नष्ट हो है ताते याचनाकरि आहार लेना मुनिकों युक्त नाहीं। बहुरि वै कहै हैंमुमिकै बाईस परीषहनिविणे याचनापरीषह कही है, सो मांगेविना तिस परीषहका सहना कैसें । | होय ? ताका समाधान____ याचना करनेका नाम याचनापरीषह नाहीं है। याचना न करनी, ताका नाम याचनापरीषह है। जाते अरति करनेका नाम अरतिपरीपह नाहीं, अरति न करनेका नाम अरतिपरीषह है तैसें जानना। जो याचना करना, परीषह ठहरै, तो रंकादि घनी याचना करै हैं, तिनकै घना धर्म होय । अर कहोगे, मान घटावनेंते याकौं परीषह कहै हैं, तो कोई कषायी कार्यके अर्थि कोई कषाय छोरे भी पापी ही होय । जैसे कोई लोभकै अर्थि अपना अपमानकों भी न गिर्ने, तौ ताकै लोभकी तीव्रता है। उस अपमान करावनेते भी महापाप हो है। अर आपकै इच्छा किछु नाहीं, कोई स्वयमेव अपमान करें है, तो वाकै महाधर्म हो है। सो यहां तो भोजनका लोभकै अर्थि याचानाकरि अपमान कराया, तातै पाप ही है, धर्म नाहीं । बहुरि वस्त्रादिकके भी अर्थि याचना करै हैं, सो वस्त्रादिक कोई धर्मका अंग नाहीं है । शरीरसुखका कारण है। तातै पूर्वोक्तप्रकार ताका निषेध जानना । अपना धर्मरूप उच्चपदको याचनाकार
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy