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मो.मा. प्रकाश
वा मान नाहीं है। माया मान तो तब होय, जब छल करनेकै अर्थि वा महंतताकै अर्थि ऐसा | स्वांग करें। सो भुनिनकै ऐसे प्रयोजन हैं नाहीं। तातें इनकै माया मान नाहीं है। जो ऐसे | ही माया मान होय, तो जे मनहीकरि पाप करें बचनकायकरि न करें, तिन सबनिकै माया । || ठहरै। अर जे उच्चपदके धारक नीचवृत्ति नाहीं अंगीकार करै हैं, तिन सबनिकै मान ठहरे।। । ऐसे अनर्थ होय । बहुरि तें कह्या-"आहार मांगनेमें अतिलोभ कहा भया” सो अतिकषाय
होय, तब लोकनिंद्य कार्य अंगीकारकरिके भी मनोरथ पूर्ण किया चाहै, सो मांगना लोकनिंद्य | है, ताकौं भी अंगीकारकरि श्राहारकी इच्छा पूर्ण करनेकी चाहि भई। तातें यहां अतिलोभ | भया। बहुरि तें कह्या-"मुनिधर्म कैसे नष्ट भया,” सो मुनिधर्मविषै ऐसी तीब्रकषाय संभवै | नाहीं । बहुरि काहूका आहारदेनेका परिणाम न था, यानै वाका घरमें जाय याचना करी ।
तहां वाकै सकुचना भया वा न दिए लोकनिंद्यहोनेका भय भया। ताते वाकौं आहार दिया, | | सो वाका अंतरंग प्राण पीड़नेंतें हिंसाका सद्भाव आया । जो आप वाका घरमैं न जाते, उस
हीकै देनेका उपाय होता, तो देता । वाकै हर्ष होता। यह तौ दबायकरि कार्य करावना भया | बहुरि अपना कार्यकै अर्थि याचनारूप बचन है, सो पापरूप है। सो यहां असत्यबवन भी
भया । बहुरि वाकै देनेकी इच्छा न थी, यानें जाच्या, तब वाने अपनी इच्छातें दिया नाहीं--- सकुचिकरि दिया। तातें अदत्तग्रहण भी भया । बहुरि गृहस्थके घरमैं स्त्री जैसैं तिष्टै थी, यह
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