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मो.मा. प्रकाश
दिकके कारन दोऊ समान हैं । बहुरि परिणामनिकी स्थिरताकरि धर्मसाधनेते' ही परिग्रहपना न होय तो काहू को बहुत शीत लागे सो सोडि राखि परिणामनिकी स्थिरता करेंगा अर धर्म साधेगा तो वाकों भी निःपरिग्रह कहौ । ऐसे गृहस्थधर्म मुनिधर्मविषै विशेष कहा रहेगा। जाके परीपह सहने की शक्ति न होय, सो परिग्रह राखिधर्म साधै। ताका नाम गृहस्थधर्म, अर जाकै । परिणाम निर्मल भए परीषहकरि व्याकुल न होय सो परिग्रह न राखै अर धर्म साधे, ताका नाम मुनिधर्म, इतना विशेष है। बहुरि कहोगे, शीतादिकी परिषहकरि व्याकुल कैसे न होय सो व्याकुलता तौ | मोहके उदयके निमित्ततें है । सो मुनिके षष्ठादि गुणस्थाननिवि तीन चौकड़ी का उदय नाहीं। अर संज्वलनकै सर्वघाती स्पर्द्धकनिका उदय नाहीं । देशघाती स्पर्द्धकनिका उदय है, सो किछु । तिनका घल नाहीं । जैसे वेदक सम्यग्दृष्टीकै सम्पङ्मोहनीयका उदय है, सो सम्यक्त्वों घात न करि सके; ते सैंदेशघाती संज्वलनका उदय परिणामनिकों व्याकुल करि सकै नाहीं। मुनिकै अर
औरनिके परिणामनिकी समानता है नाहीं। और सबनिकै सर्वघातिका उदय है, इनकै देशघातीका || | उदय है । ताते औरनिकै जैसे परिणाम होय, तैसे उनकै कदाचित न होय तातें जिनके सर्वघाती। कषायनिका उदय होय, ते गृहस्थ ही रहें अर जिनकै देशघातीका उदय होय ते मुनिधर्म अंगी-18
कार करें। ताकै शीतादिककरि परिणाम व्याकुल न होय, तातें, वस्त्रादिक राखें नाहीं। बहुरि । कहोगे---जैन शास्त्रनिविषे चौदह उपकरण मुनि राखें, ऐसा कहा है । सो तुम्हारे ही शास्त्र
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