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मो.मा. प्रकाश
निविषे कया है, दिगंबर जैनशास्त्रनिविषै तो कह्या नाहीं । तहांतौ लंगोटमात्र परिग्रह रहे भी ग्यारहीं प्रतिमाका धारक श्रावक ही कह्या । सो अब यहां विचारौ, दोऊनिमैं कल्पित वचन कौन है प्रथम तौ कल्पित रचना, कषायी होय सो करै । बहुरि कषायी होय, सोही नीचापदत्रिषै उच्चपनों प्रगट करै सो यहां दिगंबरविषे वस्त्रादि राखे धर्म होय ही नाहीं, ऐसा तौ न का परन्तु तहां श्रावकधर्म कह्या । श्वेतांबर विषै मुनिधर्म कह्या । सो यहां जानै नीची क्रिया होतें, उच्चत्व पद प्रगट किया, सो ही कषायी है । इस कल्पित कहनेकरि आपकों वस्त्रादि राखतें भी लोक मुनि मानने लगें, तातें मानकषाय पोष्या गया । अर औरनिकों सुगमक्रिया| विषै उच्चपदका होना दिखाया, तातैं घने लोक लगि गए । जे कल्पित मत भए हैं, ते ऐसे ही भए हैं। तातै श्वेतांबरमतविषे वस्त्रादि होतैं मुनिपना कया है, सो पूर्वोक्त युक्तिकरि विरुद्ध भास है । तातें ए कल्पितवचन हैं, ऐसा जानना । बहुरि कहोगे — दिगंबरविषे भी शास्त्र, पीकी आदि मुनिकै उपकरण कहे हैं, तैसें हमारे चौदह उपकरण कहे हैं।। ताका समाधान
जाकर उपकार होय, ताका नाम उपकरण है । सो यहां शीतादिककी वेदना दूर करतैं उपकरण ठहराइए, तौ सर्वपरिग्रह सामग्री उपकरण नाम पावै । सो धर्मविषै इनका कहा प्रयोजन ? ए तो पापका कारण हैं । धर्मविषै तौ धर्मका उपकारी जे होंय, तिनका नाम उपकरण है । सो शास्त्र ज्ञानिकों कारण, पीछी दयाकौं, कमण्डलु शौचकौं कारण, सोए तौ
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