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मो.मा.
|| नाहीं। सो कैसे बने । बहुरि हाटिविर्षे समवसरण उतारया कहैं, सो इंद्रकृत समवसरण प्रकाश
हाटिविषै कैसे रहै ? इतनी रचना तहां कैसे समावै । बहुरि हाटिविणे काहेकौं रहै, कहा इंद्र
हाटि सारिखी रचना करनेकौं भी समर्थ नाही, जाते हाटिका आश्रय लीजिये। बहुरि कहैं, 1 केवली उपदेश देने कौं गए । सो घरि जाय उपदेश देना अतिरागता होय, सो मुनि के भी | । सम्भवै नाहीं । केवली के कैसे बनै । ऐसे ही अनेक विपरीतिता तहां प्ररूपें हैं। केवली ||
शुद्धज्ञानदर्शनमय रागादिरहित भए हैं, तिनकै अघातिनिके उदयतें सम्भवतीक्रिया कोई हो है, अर मोहादिकका अभाव भया है । तातै उपयोगमिले जो क्रिया होय सके, सो सम्भवै नाहीं । पापप्रकृतिका अनुभाग अत्यंत मंद भया है । ऐसा मंद अनुभाग अन्य कोई कै नाहीं। । ताते' अन्यजीवनिकै पापउदयतें जो क्रिया होती देखिए है, सो केवलीके न होय। ऐसे । केवली भगवान के सामान्य मनुष्य कीसी क्रिया का सद्भाव कहि देव का खरूपकौं अन्यथा
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రాం రాం కొందించిన
__ बहुरि गुरू का खरूपकों अन्यथा प्ररूपै हैं । मुनिकै वस्त्रादिक चौदह उपकरण कहै हैं। । सो हम पूछे हैं कि, मुनिकों निग्रंथ कहें अर मुनिपद लेते नवप्रकार सर्वपरिग्रह का त्यागकरि महाबत अङ्गीकार करें, सो ए वस्त्रादिक परिग्रह हैं कि नाहीं। जो हैं तो त्यागकिए पीछे काहेकौं राखें, अर नाहीं हैं, तो वस्त्रादिक गृहस्थ राखै ताकौं भी परिग्रह मति कही। सु.